Ajmer Sharif Dargah Controversy:-राजस्थान की मशहूर अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर चल रहे विवाद ने राजनीतिक तूल पकड़ लिया है। इस विवाद में अब ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेता और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है , जाने पूरी खबर ?
Ajmer Sharif Dargah Controversy:-राजस्थान की प्रसिद्ध अजमेर शरीफ दरगाह इन दिनों विवादों में है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की यह दरगाह, जो 800 साल पुरानी बताई जाती है, को लेकर अब एक नया विवाद शुरू हुआ है। दिल्ली निवासी हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दावा किया है कि दरगाह की जगह पहले एक संकट मोचन महादेव मंदिर था। इस दावे पर निचली अदालत ने याचिका स्वीकार करते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी किया है और मामले की सुनवाई के लिए 20 दिसंबर 2024 की तारीख तय की गई है।
इस मुद्दे पर अलग-अलग विचारधाराओं के नेताओं के बयान सामने आए हैं, जिसमें असदुद्दीन ओवैसी और गिरिराज सिंह के तीखे बयान चर्चा में हैं।
असदुद्दीन ओवैसी का कड़ा बयान
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस मामले में भाजपा और आरएसएस पर तीखा हमला किया। उन्होंने इसे नफरत फैलाने की राजनीति करार देते हुए कहा कि,
“आप हर जगह जाकर कहेंगे कि मस्जिद या दरगाह की जगह कुछ और था। अगर मुसलमान भी ऐसा कहना शुरू कर देंगे, तो यह कहां रुकेगा? इससे कानून और लोकतंत्र का क्या होगा?”
ओवैसी ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा कि इनके शासनकाल में भाईचारे और कानून के राज को कमजोर किया जा रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि,
“निचली अदालतें पूजा स्थल अधिनियम (प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991) पर सुनवाई क्यों नहीं कर रही हैं? सरकार अल्पसंख्यकों के मंत्रालय को भी इस मामले में क्यों घसीट रही है?”
ओवैसी ने यह भी कहा कि दरगाह पर हर प्रधानमंत्री, नेहरू से लेकर मोदी तक, चादर भेजते रहे हैं। इसके बावजूद, मस्जिदों और दरगाहों के प्रति बीजेपी-आरएसएस की नफरत क्यों बढ़ रही है?
गिरिराज सिंह ने क्या कहा?
इस मामले पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने याचिकाकर्ता के दावे का समर्थन करते हुए कहा,
“अगर कोर्ट ने सर्वे के आदेश दिए हैं, तो इसमें गलत क्या है? यह सच है कि मुगलों ने हमारे मंदिर तोड़े थे। अगर कांग्रेस ने 1947 के बाद इस मुद्दे को सुलझा दिया होता, तो हमें कोर्ट में जाने की जरूरत नहीं पड़ती।”
गिरिराज सिंह ने कांग्रेस पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाया और कहा कि यह सब उसी का नतीजा है। उन्होंने यह भी कहा कि मंदिरों पर मस्जिद बनाने की मुगलकालीन मुहिम के कारण ऐसे विवाद पैदा हुए हैं।
विवाद की जड़
इस विवाद की शुरुआत हिंदू सेना के नेता विष्णु गुप्ता द्वारा दायर याचिका से हुई, जिसमें उन्होंने दरगाह की जगह महादेव मंदिर होने का दावा किया। उनके मुताबिक, कई ऐतिहासिक साक्ष्य इस बात का समर्थन करते हैं।
निचली अदालत ने इस दावे पर सुनवाई के लिए आदेश दिया है और दरगाह की जमीन का सर्वे करने की बात कही है।
पूजा स्थल अधिनियम (1991) क्या है?
यह कानून 1991 में संसद में पारित हुआ था। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि
“15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था, उसे उसी स्थिति में रखा जाए।”
इस अधिनियम के तहत, किसी धार्मिक स्थल की स्थिति बदलने की अनुमति नहीं है।
ओवैसी और अन्य मुस्लिम नेताओं का कहना है कि अदालतों को इस अधिनियम के तहत मामले की सुनवाई करनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
विवाद
यह मुद्दा न केवल धार्मिक बल्कि राजनीतिक रूप से भी बड़ा हो गया है।
- मुस्लिम समुदाय इसे अपनी धार्मिक पहचान पर हमला मान रहा है।
- हिंदू संगठन इसे “ऐतिहासिक अन्याय” को ठीक करने का अवसर बता रहे हैं।
- राजनीतिक दल इसे अपनी-अपनी विचारधाराओं के मुताबिक भुना रहे हैं।
अजमेर शरीफ दरगाह विवाद सिर्फ एक धार्मिक स्थल का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह देश में धर्म और राजनीति के आपसी संबंधों की जटिलता को दर्शाता है। आने वाले दिनों में इस विवाद का असर न केवल अदालतों में, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी देखने को मिलेगा।