बारिश के मौसम में दिल्ली की सियासत अचानक और गरमा गई है। संसद से लेकर सड़कों तक, राहुल गांधी और विपक्षी नेताओं का प्रदर्शन चर्चा में है, 

Akhilesh Yadav News:-दिल्ली की सियासत में एक तस्वीर इस वक्त सोशल मीडिया पर खूब वायरल है—सपा प्रमुख अखिलेश यादव बेरिकेडिंग कूदते हुए। ये नज़ारा उस वक्त का है जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाते हुए संसद से चुनाव आयोग दफ्तर की ओर निकल पड़े थे। उनके साथ विपक्ष के कई नेता भी थे, लेकिन सुर्खियां बटोरीं अखिलेश की इस ‘पॉलिटिकल जंप’ ने।
किसी ने कहा ये राहुल के लिए ताकत का संदेश है, किसी ने इसे अखिलेश की दोस्ती का सबूत बताया। लेकिन हकीकत में तस्वीर का मतलब थोड़ा अलग है—क्योंकि जिस राहुल गांधी के लिए अखिलेश ने ये छलांग लगाई, वही अब उनकी राजनीति के लिए सबसे बड़ा खतरा बनते दिख रहे हैं।
साथी से चुनौती बनने तक का सफर
लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश ने बड़ा दांव खेला। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में कदम से कदम मिलाकर चले, मंच साझा किया और यूपी में कांग्रेस को बराबरी का साझेदार बताया। उस वक्त ये दोस्ती BJP के खिलाफ एकजुट मोर्चा लग रही थी।
लेकिन अब हालात बदल रहे हैं—कांग्रेस यूपी में अपनी जमीन बढ़ाने की खुली कोशिश कर रही है और ये कोशिश सीधा सपा के पारंपरिक वोट बैंक को निशाना बना रही है।
कांग्रेस के बयानों से सपा में बेचैनी
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अजय राय (कांग्रेस यूपी प्रभारी) ने साफ कहा—पार्टी अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी। 2027 विधानसभा चुनाव में गठबंधन होगा या नहीं, ये हालात और हाईकमान तय करेंगे।
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इमरान मसूद (कांग्रेस का बड़ा मुस्लिम चेहरा) ने तो और आगे बढ़कर कहा—सपा के साथ गठबंधन से कांग्रेस को नुकसान हो रहा है। उन्होंने सपा की तुलना BJP से करते हुए कहा कि जैसे BJP अपने सहयोगियों को निगल जाती है, वैसे ही सपा भी कांग्रेस को ‘खा’ रही है।
इन बयानों का सीधा मतलब है—कांग्रेस अब सपा के कोर वोट बैंक, यानी मुस्लिम वोटरों, को अपनी ओर खींचने के मूड में है।
सपा के लिए सबसे बड़ा खतरा कहां है?
सपा की राजनीति यादव-मुस्लिम समीकरण पर टिकी है।
अगर कांग्रेस मुस्लिम वोटरों को खींचने में थोड़ी भी कामयाब हुई, तो सपा की सीटें सीधे घट सकती हैं।
राहुल गांधी का यूपी में ज्यादा एक्टिव होना, पुराने नेताओं को वापस लाना और मुस्लिम चेहरों को आगे करना—ये सब सपा के लिए चेतावनी है कि लड़ाई सिर्फ BJP से नहीं, बल्कि ‘साझेदार’ कांग्रेस से भी है।
2024 के नतीजों में कांग्रेस का उभार
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2019 में यूपी में कांग्रेस का वोट शेयर 6.36% था, 2024 में बढ़कर 9.7% हो गया। यानी करीब 3.3% का उछाल।
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2019 में कांग्रेस के पास सिर्फ 1 सीट थी, 2024 में 6 सीटें मिल गईं।
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सपा ने 2019 में 5 सीटें जीती थीं, लेकिन 2024 में INDIA अलायंस के तहत 37 सीटें हासिल कर लीं।
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INDIA ब्लॉक ने कुल 43 सीटें जीतीं—सपा 37, कांग्रेस 6—और BJP 33 पर सिमट गई।
ये आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस धीरे-धीरे लेकिन लगातार अपनी ताकत बढ़ा रही है।
गठबंधन—फायदा या नुकसान?
सपा और कांग्रेस का रिश्ता हमेशा एक जैसा नहीं रहा। 2017 में ‘दो लड़कों की दोस्ती’ के नाम पर गठबंधन हुआ था, लेकिन नतीजा बुरी तरह फ्लॉप रहा।
इस बार 2024 में दोनों को साथ आने से फायदा जरूर मिला, लेकिन कांग्रेस की बढ़त सपा के लिए आने वाले चुनावों में मुश्किल खड़ी कर सकती है—खासकर 2027 विधानसभा चुनाव में।
अखिलेश यादव की ‘पॉलिटिकल जंप’ शायद एकता का संदेश थी, लेकिन यूपी की राजनीति में ये छलांग एक ऐसे दौर की शुरुआत भी हो सकती है जहां ‘दोस्त’ ही सबसे बड़ा चुनौती बन जाए। बीजेपी भले अभी सबसे बड़ा विरोधी हो, लेकिन कांग्रेस का बढ़ता असर सपा की नींव को हिला सकता है।
यूपी में अगली सियासी लड़ाई सिर्फ भगवा बनाम लाल-नीली नहीं होगी, बल्कि उसमें हरे झंडे वाली एक नई बाज़ी भी होगी—जिसका नाम है कांग्रेस।