Bangladesh News:-बांग्लादेश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति में गहरा तनाव और विभाजन उभरकर सामने आ रहा है। जिसको देख कर राजनीती ने कुछ उत्तल पुतल हो सकती है , जाने इसके बारे में ? 

Bangladesh News:-बांग्लादेश में शेख हसीना के इस्तीफे और देश छोड़ने के बाद बनी अंतरिम सरकार के तहत राजनीतिक माहौल जटिल हो गया है। पहले जहां विपक्षी पार्टियां बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) और जमात-ए-इस्लामी एकजुट दिख रही थीं, वहीं अब इनके बीच आपसी मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं।
राजनीतिक विवाद
बीएनपी ने हाल ही में जमात-ए-इस्लामी पर आरोप लगाया है कि वह भारत से अपने संबंध सुधारने के लिए शेख हसीना को माफ करना चाहती है। बीएनपी के महासचिव रुहुल कबीर रिजवी ने इसे लेकर जमात पर तीखा हमला करते हुए कहा कि जमात भारत से अच्छे संबंध बनाने के लिए अपने मूल सिद्धांतों से समझौता कर रही है। जवाब में जमात-ए-इस्लामी ने इन आरोपों को “गलत और राजनीति से प्रेरित” करार दिया।
जमात का कहना है कि उनकी राजनीति इस्लामी सिद्धांतों पर आधारित है और वे भारत के “आधिपत्य और फासीवाद” के खिलाफ हैं। उन्होंने बीएनपी को आत्ममंथन की सलाह दी और आरोप लगाया कि बीएनपी खुद भारत के साथ अपने संबंध सुधारने के लिए प्रयासरत रही है।
चुनाव को लेकर विवाद
बांग्लादेश में चुनाव जल्द कराने को लेकर बीएनपी और अंतरिम सरकार के बीच भी मतभेद गहरा गए हैं। बीएनपी का आरोप है कि अंतरिम सरकार जानबूझकर चुनाव में देरी कर रही है।
हाल ही में मोहम्मद युनूस ने यह सुझाव दिया कि वोटिंग की न्यूनतम उम्र 18 साल से घटाकर 17 साल कर दी जाए, ताकि युवा अपनी जिम्मेदारी निभा सकें। बीएनपी ने इसे चुनाव प्रक्रिया में देरी करने का एक और तरीका बताया। उनका कहना है कि नई मतदाता सूची तैयार करने से चुनाव और लंबित हो जाएगा।
युनूस ने हाल ही में यह भी संकेत दिया था कि चुनाव 2025 के अंत से लेकर 2026 की पहली छमाही तक हो सकते हैं।
इतिहास
बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी के बीच वैचारिक मतभेद भी गहराते जा रहे हैं। जमात एक इस्लामी लोक कल्याणकारी राज्य की बात करती है और शरिया कानून का समर्थन करती है, जबकि बीएनपी धर्म आधारित राजनीति से बचने की वकालत करती है।
1999 और 2008 तक दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन था, लेकिन अब यह गठबंधन टूट चुका है। जमात ने बीएनपी पर “सिर्फ सत्ता के लिए” समझौता करने का आरोप लगाया है।
शेख हसीना
शेख हसीना के सत्ता छोड़ने के बाद उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए, जबकि बीएनपी और जमात के नेताओं को राहत दी गई। जमात और बीएनपी के इस टकराव ने दिखाया कि शेख हसीना के जाने के बाद भी बांग्लादेश की राजनीति स्थिर नहीं है।
फिलहाल बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता जारी है। विपक्षी पार्टियों के बीच बढ़ते मतभेद, अंतरिम सरकार की नीतियों और चुनाव की अनिश्चितता ने देश की स्थिति को जटिल बना दिया है। अब यह देखना होगा कि क्या बीएनपी और जमात अपने मतभेद सुलझाकर एकजुट हो पाएंगे, या यह टकराव और गहराएगा।