Bihar में वोटर लिस्ट सत्यापन पर बवाल, ट्रैक्टर को मिला प्रमाणपत्र!

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राज्य में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) ने एक गंभीर और चौंकाने वाला विवाद खड़ा कर दिया है। जाने इसके बारे में ? Bihar News

Bihar News:-बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य था – राज्य की मतदाता सूची को और अधिक पारदर्शी और सही बनाना। लेकिन अब इस प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। वजह? मतदाता सत्यापन के नाम पर अजीबो-गरीब घटनाएं सामने आ रही हैं, जो न सिर्फ प्रशासन की लापरवाही दिखा रही हैं, बल्कि पूरे लोकतांत्रिक ढांचे को भी कटघरे में खड़ा कर रही हैं।

📸 ट्रैक्टर की फोटो वाला निवास प्रमाणपत्र

इस पूरी प्रक्रिया की सबसे चौंकाने वाली घटना मुंगेर जिले के सदर प्रखंड कार्यालय से सामने आई। यहां 8 जुलाई 2025 को एक नागरिक के नाम पर निवास प्रमाणपत्र जारी किया गया, लेकिन उस प्रमाणपत्र पर व्यक्ति की तस्वीर की जगह एक सोनालिका ट्रैक्टर की फोटो थी। यह मामला जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, पूरे प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे। लोगों ने इसे “डिजिटल इंडिया” का मजाक करार दिया।

📱 अब ब्लूटूथ डिवाइस को मिला प्रमाणपत्र!

ट्रैक्टर वाला मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि एक और नया खुलासा हो गया। इस बार, कथित तौर पर एक ब्लूटूथ डिवाइस को आवासीय प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया। सोचने वाली बात यह है कि अगर टेक्नोलॉजी आधारित सत्यापन में इस तरह की गलतियां हो रही हैं, तो फिर क्या यह सिर्फ गलती है या इसके पीछे कोई गहरी योजना?

🗳️ विपक्ष का आरोप: वोटर लिस्ट से हटाए जा रहे गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोग

इन घटनाओं के बाद विपक्षी दलों ने जोरदार हमला बोला है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि सरकार 2003 की पुरानी वोटर लिस्ट को आधार बनाकर गरीबों, दलितों, और अल्पसंख्यकों को मतदाता सूची से बाहर करने की साजिश कर रही है। उन्होंने कहा कि ये वही लोग हैं जिनके पास अक्सर जन्म प्रमाणपत्र, आधार कार्ड या मकान का पक्का कागज़ नहीं होता, इसलिए उन्हें सत्यापन में परेशानी आ रही है।

🏠 26.54% लोग टीन-खपरैल की छतों में रहते हैं – क्या उनका कोई ठिकाना नहीं?

बिहार की बड़ी आबादी अब भी कच्चे मकानों या टीन-खपरैल की छतों वाले घरों में रहती है। ऐसे परिवारों के पास आमतौर पर सरकारी दस्तावेज़ों की कमी होती है। इस सत्यापन प्रक्रिया में उन्हीं से बार-बार प्रमाण मांगे जा रहे हैं, जिससे वे डर और अनिश्चितता में जी रहे हैं।

⚖️ आधार कार्ड पर भी उठे सवाल

इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की एक अहम टिप्पणी भी सामने आई है। कोर्ट ने कहा है कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। इसके बावजूद सीमांचल इलाके में 100% से भी ज्यादा आधार सैचुरेशन को देखकर सवाल उठाए जा रहे हैं कि कहीं बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए तो मतदाता नहीं बन गए?

🚫 9 जुलाई को महागठबंधन का बिहार बंद

इन विवादों के बीच, 9 जुलाई को महागठबंधन ने राज्यव्यापी बिहार बंद बुलाया, जिसमें लोगों ने सड़कों पर उतर कर विरोध जताया। इस दौरान एक और घटना सामने आई – सारण जिले में एक व्यक्ति BLO (Booth Level Officer) बनकर लोगों को गुमराह करता रहा और एक महिला का मंगलसूत्र तक लूट लिया गया। इससे जनता का भरोसा इस पूरी प्रक्रिया से उठता जा रहा है।

📊 अब तक कितनी हुई प्रक्रिया?

निर्वाचन आयोग के मुताबिक 25 जुलाई तक 7.90 करोड़ मतदाताओं में से करीब 46.95% लोगों ने फॉर्म जमा किया है। यानी आधे से ज्यादा लोग अब भी इस प्रक्रिया से बाहर हैं। लेकिन जब ऐसे ट्रैक्टर और ब्लूटूथ वाले मामले सामने आते हैं, तो यह आंकड़े भी लोगों का भरोसा नहीं जीत पा रहे।

क्या ये सिर्फ लापरवाही है या किसी साजिश की तैयारी?

पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यही है – क्या यह सब सिर्फ डिजिटल गड़बड़ी और प्रशासनिक लापरवाही है या फिर किसी बड़ी चुनावी रणनीति की तैयारी? असली जवाब तो 30 सितंबर 2025 को मिलेगा, जब अंतिम वोटर लिस्ट प्रकाशित होगी।

मतदाता सूची कोई मामूली चीज नहीं है। यही सूची तय करती है कि कौन इस देश के लोकतंत्र में भागीदारी करेगा। लेकिन जब ऐसे प्रमाणपत्र ट्रैक्टरों और गैजेट्स के नाम पर जारी हो रहे हों, तो ये केवल मजाक नहीं होता – ये लोकतंत्र की बुनियाद को हिला देने वाली बात होती है।

बिहार में यह केवल तकनीकी गड़बड़ी नहीं है। यह दिखाता है कि स्थानीय प्रशासनिक तंत्र कितनी कमजोर है और जनता का विश्वास इससे कितनी तेजी से टूट सकता है।

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