Builder Dispute:-यमुना एक्सप्रेसवे विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिल्डर को झटका, 1500 करोड़ रुपये चुकाने का आदेश जबकि ख़रीदा 205 करोड़ में , 12 साल तक मकान नहीं बना तो…. 

Builder Dispute:-बिल्डरों की मनमानी और उनके विवादों का खामियाजा अक्सर आम मकान खरीदारों को भुगतना पड़ता है, लेकिन इस बार हालात उलटे हो गए। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (YEIDA) के पक्ष में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए बिल्डर वनालिका डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड की याचिका खारिज कर दी और उसे 1500 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है। यह मामला उत्तर प्रदेश के यमुना एक्सप्रेसवे पर स्थित 100 एकड़ प्लॉट के सरेंडर से जुड़ा हुआ है, जिसे वर्ष 2011-2012 में बसपा और सपा के शासनकाल के दौरान खरीदा गया था।
विवाद
इस प्रोजेक्ट के तहत सेक्टर 22D में 100 एकड़ की जमीन 4 कंपनियों के कंसोर्टियम को दी गई थी, जिसमें सनवर्ल्ड इंफ्रा कंपनी, वनालिका डेवलपर्स, ओडियन बिल्डर्स, और वनालिका इंफ्रा कंपनी शामिल थीं। इस प्रोजेक्ट को सनवर्ल्ड सिटी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा मैनेज किया जा रहा था। हालांकि, कंसोर्टियम के आंतरिक विवादों और अन्य कारणों से इस जमीन पर कोई भी निर्माण नहीं हो सका। प्रोजेक्ट रुकने के बाद, वनालिका डेवलपर्स ने यमुना प्राधिकरण के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे अब हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है।
हाईकोर्ट का फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि वनालिका डेवलपर्स की याचिका में कोई कानूनी आधार नहीं है। अदालत ने कहा कि कंसोर्टियम में वनालिका डेवलपर्स की केवल 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है, इसलिए उसका अधिकार प्राधिकरण के फैसले को चुनौती देने का नहीं बनता। साथ ही, यह भी कहा गया कि इस विवाद का कारण कंसोर्टियम के अंदरूनी मतभेद हैं, न कि यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरण की कोई गलती। अदालत ने प्राधिकरण की ओर से लगाए गए 1500 करोड़ रुपये की मांग को सही ठहराया, जो मौजूदा जमीन की कीमत के अनुसार है।
प्रोजेक्ट की स्थिति और खरीदारों की प्रतिक्रिया
यह जमीन वर्ष 2011-12 में 205 करोड़ रुपये में खरीदी गई थी, लेकिन वर्तमान में इसकी कीमत बढ़कर 1700 करोड़ रुपये हो चुकी है। अब इस प्लॉट के सरेंडर के लिए 1500 करोड़ रुपये और देने होंगे। इस विवाद के कारण, मकान खरीदारों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उनके निवेश की वापसी अभी तक अनिश्चित बनी हुई है।
प्रोजेक्ट में निवेश करने वाले खरीदारों ने भी अपनी आवाज उठाई है। उन्होंने प्लॉट के सरेंडर होने पर विरोध प्रदर्शन और धरना देने की धमकी दी है। खरीदारों की मांग है कि उन्हें उनके निवेशित पैसे ब्याज सहित लौटाए जाएं, और बिल्डर के खिलाफ सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों से जांच कराई जाए।
एनसीएलटी में लंबित मामला
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी उल्लेख किया कि यह विवाद एनसीएलटी (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) में पहले से ही लंबित है, और इसे वहां उपयुक्त तरीके से हल किया जाना चाहिए। अदालत ने वनालिका डेवलपर्स को यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरण के खिलाफ अपने सभी दावे वहीं प्रस्तुत करने की सलाह दी है।
योगी सरकार का रुख
उत्तर प्रदेश की मौजूदा योगी सरकार ने इस मामले में पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ निपटान करने की बात कही है। माना जा रहा है कि कोर्ट के आदेश के बाद, इस 100 एकड़ की जमीन की जल्द नीलामी शुरू होगी, जिससे इस पर टाउनशिप डेवलपमेंट की संभावनाएं बढ़ गई हैं। इसके साथ ही, यह भी उम्मीद है कि इस नीलामी से निवेशकों और खरीदारों के लिए बेहतर अवसर उपलब्ध होंगे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में देखा जा रहा है, जहां बिल्डर की गलती के कारण उसे भारी जुर्माना भुगतना पड़ा। इस फैसले से यमुना एक्सप्रेसवे पर रुके हुए प्रोजेक्ट्स की गति बढ़ने की संभावना है, और प्राधिकरण के पक्ष में आए इस आदेश से खरीदारों को भी राहत मिलने की उम्मीद है।