पाकिस्तान की राजनीति एक नए मोड़ पर खड़ी है, जहां लोकतंत्र के मुखौटे के पीछे सेना की हुकूमत तेजी से उजागर हो रही है। जाने इसके बारे में ? 

Pakistan News:-पाकिस्तान की राजनीति आज एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गई है जहां यह सवाल अब जोर से उठने लगा है — क्या वहां अब सच में लोकतंत्र बचा भी है, या यह पूरी तरह से सेना के इशारों पर चलने वाला देश बन चुका है?
कई हालिया घटनाएं बताती हैं कि अब प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ सिर्फ दिखावे का चेहरा रह गए हैं, और असली ताकत फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के पास है।
सेना की विदेश नीति में एंट्री – नई परंपरा की शुरुआत
25 मई 2025 को तुर्की में जब प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने तुर्क राष्ट्रपति एर्दोगन से मुलाकात की, तो उनके साथ पाकिस्तान सेना प्रमुख आसिम मुनीर भी मौजूद थे।
फिर, जब शरीफ ईरान पहुंचे, तब भी मुनीर उनके साथ थे और खुद प्रधानमंत्री ने उनका परिचय ईरान के राष्ट्रपति से करवाया।
अब ये बात ध्यान देने वाली है कि आमतौर पर सेना प्रमुख विदेश यात्राओं में शामिल नहीं होते। यह एक असामान्य और असाधारण बात थी।
इससे यह साफ संकेत मिला कि पाकिस्तान की विदेश नीति में भी अब सेना की सीधी भागीदारी है।
‘फर्जी तस्वीर’ की कहानी – मज़ाक बना सरकार और सेना दोनों का
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में जब तनाव बढ़ा, तो पाकिस्तान ने एक नया ऑपरेशन “बुनीयनुम मर्सूस” शुरू करने का दावा किया।
इसी दौरान एक डिनर पार्टी में आसिम मुनीर ने प्रधानमंत्री शरीफ को एक तस्वीर भेंट की, जो कथित रूप से भारत के खिलाफ पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई की थी।
लेकिन कुछ ही घंटों बाद सोशल मीडिया ने पोल खोल दी — वो तस्वीर दरअसल 2017 में चीन की सेना की थी।
इस घटना से ना सिर्फ सेना की साख को धक्का पहुंचा, बल्कि सरकार की भी काफी बेइज्जती हुई। लोग पूछने लगे कि क्या पाकिस्तान की सरकार सिर्फ दिखावे के लिए है?
SIFC: निवेश के बहाने सेना को इकोनॉमिक पावर
2023 में पाकिस्तान में एक खास संस्था बनाई गई थी — SIFC (Special Investment Facilitation Council)।
इसका मकसद था कि विदेशी निवेश बढ़ाया जाए। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस काउंसिल के को-चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री और फील्ड मार्शल मुनीर हैं।
अब ये सिर्फ निवेश की बात नहीं रही — इससे सेना को आर्थिक फैसलों में भी सीधा हस्तक्षेप करने का अधिकार मिल गया।
फील्ड मार्शल की रैंक: ताकत का प्रतीक
पिछले ही दिनों आसिम मुनीर को ‘फील्ड मार्शल’ की उपाधि दी गई। ये रैंक पाकिस्तान में 1959 के बाद पहली बार किसी को दी गई है।
इससे यह संदेश और भी साफ हो गया कि मुनीर सिर्फ आर्मी चीफ नहीं, बल्कि अब वो देश के सबसे ताकतवर शख्स बन चुके हैं।
विपक्ष को दबाना – इमरान खान की PTI पर शिकंजा
पाकिस्तान में विपक्ष, खासकर इमरान खान की पार्टी PTI पर लगातार दबाव डाला जा रहा है।
PTI नेताओं की गिरफ्तारी, रैलियों पर रोक, और मीडिया में सेंसरशिप जैसी चीज़ें दिखाती हैं कि सेना अब लोकतंत्र के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट बन गई है।
तो क्या शहबाज शरीफ सिर्फ प्रवक्ता बन चुके हैं?
आज के हालात को देखकर यही लगता है कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की भूमिका बेहद सीमित हो गई है।
वे विदेश जाते हैं, लेकिन उनके साथ सेना प्रमुख भी जाते हैं। नीति बनती है, लेकिन उसमें सेना की आखिरी मुहर होती है।
सवाल ये है कि क्या वे अब प्रधानमंत्री कम, और सेना के प्रवक्ता ज़्यादा हो गए हैं?
पाकिस्तान में हालात धीरे-धीरे नहीं, तेजी से एक “मिलिट्री-ड्रिवन डेमोक्रेसी” की तरफ बढ़ रहे हैं।
सेना सिर्फ सुरक्षा नहीं देख रही, बल्कि अब विदेश नीति, अर्थव्यवस्था, निवेश और राजनीति — हर जगह उसकी पकड़ बन चुकी है।
लोकतंत्र का ढांचा दिखाया जरूर जा रहा है, लेकिन असली स्क्रिप्ट रावलपिंडी के GHQ में लिखी जा रही है।
क्या पाकिस्तान के लोग इसे कब तक बर्दाश्त करेंगे?
क्या वहां का लोकतंत्र अब सिर्फ एक नकाब बनकर रह जाएगा?
इन सवालों के जवाब अभी भविष्य के गर्भ में हैं, लेकिन संकेत बहुत कुछ कह रहे हैं।