Himanta Biswa Sarma:-असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही एक बयान दिया था , जिसके चलते कांग्रेस के नेतृत्व वाले 18 विपक्षी दलों उनके खिलाफ पुलिस कम्प्लेने कर दी है। आएगे जानते है इस खबर ?
Himanta Biswa Sarma:-असम में हाल ही में एक बड़ा राजनीतिक विवाद उभर कर सामने आया है, जिसमें मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के बयान ने खासा विवाद खड़ा कर दिया है। इस विवाद का केंद्रबिंदु सरमा का यह बयान है कि वह “मिया” मुसलमानों को असम पर “कब्जा” नहीं करने देंगे। इस बयान को लेकर विपक्षी दलों ने जोरदार विरोध जताया है और इसे सांप्रदायिक तनाव भड़काने वाला करार दिया है। आइए इस मामले को विस्तार से समझते हैं।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का बयान और विवाद
यह मामला तब शुरू हुआ जब असम विधानसभा में नागांव जिले में 14 साल की एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के मुद्दे पर चर्चा हो रही थी। इस दौरान राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर विपक्ष ने सवाल उठाए थे, खासतौर पर निचले असम के बांग्ला भाषी मुसलमानों को कथित रूप से निशाना बनाए जाने की घटनाओं पर। इस पर मुख्यमंत्री सरमा ने विधानसभा में कहा कि वह इन लोगों को ऊपरी असम में नहीं आने देंगे ताकि “मिया” मुस्लिम असम पर कब्जा न कर सकें। उनके इस बयान को लेकर विपक्ष ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और इसे सांप्रदायिक नफरत फैलाने वाला बताया।
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विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया
मुख्यमंत्री सरमा के इस बयान के खिलाफ असम के 18 विपक्षी दलों ने, कांग्रेस के नेतृत्व में, एक संयुक्त मोर्चा बनाकर उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। विपक्षी दलों का आरोप है कि सरमा के बयान से राज्य में सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है और यह असम की सामाजिक समरसता के लिए खतरा है। असम कांग्रेस प्रमुख भूपेन बोरा ने कहा कि यह केवल विधानसभा के भीतर ही नहीं बल्कि राज्य में भी सांप्रदायिक दंगे भड़काने का प्रयास है। उन्होंने यह भी कहा कि वे इस मामले को राष्ट्रपति तक ले जाएंगे।
मुख्यमंत्री सरमा का बचाव
विवाद बढ़ने पर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अपने बयान का बचाव किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने जो कुछ भी कहा है, वह असम के इतिहास का हिस्सा है और वह केवल वही दोहरा रहे हैं जो पूर्व गवर्नर एसके सिन्हा और असम के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई ने कहा था। सरमा ने यह भी कहा कि उन्होंने अपने बयान में कुछ भी नया नहीं जोड़ा और न ही इसे संशोधित किया है। उनका कहना था कि अगर विपक्षी दल उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करना चाहते हैं, तो उन्हें उन सभी लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करनी होगी जिन्होंने पहले इस तरह के बयान दिए हैं।
सियासी नतीजे और आगे की राह
इस विवाद ने असम की राजनीति में एक बार फिर से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को उजागर कर दिया है। विपक्षी दलों का कहना है कि मुख्यमंत्री सरमा जानबूझकर इस तरह के बयान देकर चुनावी माहौल को सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकृत करने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, सरमा अपने बयान पर कायम रहते हुए इसे असम की सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान से जोड़ रहे हैं।
यह मामला न सिर्फ असम बल्कि पूरे देश में एक गंभीर राजनीतिक बहस का विषय बन गया है। असम में आगामी चुनावों के मद्देनजर यह विवाद और भी तूल पकड़ सकता है। वहीं, विपक्ष इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर भी उठाने की तैयारी कर रहा है, जिससे यह मुद्दा आने वाले दिनों में और ज्यादा चर्चा में आ सकता है।
असम में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के बयान ने राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। जहां एक ओर उनका बयान सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का संकेत देता है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष इसे सांप्रदायिक नफरत फैलाने का आरोप लगाकर इसे राजनीतिक रूप से भुनाने की कोशिश कर रहा है। इस मामले में आगे की कार्रवाई और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं यह तय करेंगी कि यह विवाद किस दिशा में जाएगा और इसके असम की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेंगे।