IPC 420:-अब नहीं बोलना पड़ेगा 420 , हो गया बड़ा अपडेट , बदली गई तीन धारा।

IPC 420 :-भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 भारतीय कानून में धोखाधड़ी और बेईमानी से संबंधित अपराधों के लिए प्रसिद्ध है। इस धारा के तहत किसी व्यक्ति को धोखे से संपत्ति प्राप्त करने या धोखाधड़ी से किसी को संपत्ति या अन्य मूल्यवान चीज़ से वंचित करने पर सजा का प्रावधान है, जाने इसके बारे में कौन कौनसी धारा बदली गई।  Ipc 420

Ipc 420:-देशभर के कही कानून में बड़ा बदलाव किया गया है , जो ब्रिटिश काल से हमारे ऊपर थोपे गए यानि की हम उसे अब भी मान रहे थे। लेकिन अब कुछ बदलाव हो जाने के कारण से तीन धारा देशभर में लागु हो चुके है इसके अंदर से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने ले ली है.

वहीं, आईपीसी (1860), सीआरपीसी (1973) और एविडेंस एक्ट (1872) अब गुजरे जमाने की बात हो चुकी है.अब यह कानून अपना नया रूप ले चुके है जो इस प्रकार होने वाले है श में अब नई धाराओं में ही मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं. इस बीच सबसे ज्यादा चर्चा जिस धारा की हो रही है.. वो 420 है. लोग 420 को मिस कर रहे हैं.

भारतीय दंड संहिता (IPC) 420 की घर घर की कहानी:-धारा 420, भारतीय दंड संहिता (IPC) की एक प्रमुख धारा थी, जिसे धोखाधड़ी और बेईमानी के मामलों में लागू किया जाता था। यह धारा न केवल कानूनी प्रणाली में महत्वपूर्ण थी, बल्कि भारतीय समाज और संस्कृति में भी इसकी गहरी पैठ थी।

  1. फिल्म और साहित्य में:
    • फिल्म “श्री 420”: राज कपूर की 1955 की फिल्म “श्री 420” ने इस धारा को आम जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया। फिल्म में राज कपूर ने एक मासूम आदमी की भूमिका निभाई जो मुंबई में अपने सपनों की तलाश में आता है और कैसे वह धोखाधड़ी और बेईमानी की दुनिया में फंस जाता है। इस फिल्म ने ‘420’ को एक सांस्कृतिक प्रतीक बना दिया।
    • साहित्य और गीत: कई हिंदी फिल्मों, उपन्यासों और गीतों में ‘420’ का उल्लेख मिलता है, जिससे यह शब्द आम बोलचाल का हिस्सा बन गया।
  2. आम बोलचाल में उपयोग:
    • मजाक और मित्रता: दोस्त अपने जिगरी यार को मजाक में ‘420’ कहकर पुकारते हैं। यह एक तरह से मजाकिया अंदाज में उनके ऊपर आरोप लगाने का तरीका बन गया है, जिससे मित्रता और गहरी हो जाती है।
    • पैरेंटिंग में: माता-पिता भी अपने बच्चों को गलती करने या कामचोरी करने पर ‘420’ कहकर पुकारते हैं। यह एक हल्के फुल्के अंदाज में बच्चों को चेताने और सुधारने का तरीका है।
  3. हर रोज की जिंदगी में:
    • गली-मोहल्लों में: भारत के हर गली-मोहल्ले में, जब भी किसी ने कोई बेईमानी या चालाकी की हो, लोग मजाक में उसे ‘420’ कहकर बुलाते हैं।
    • कारोबार में: व्यापारी भी अपने ग्राहकों या साथियों को कभी-कभी ‘420’ कहकर बुलाते हैं, जब उन्हें लगता है कि उन्होंने कुछ धूर्तता दिखाई है।

धारा 420 की यादें और उसकी छाप

धारा 420 की लोकप्रियता आज भी बरकरार है। इस धारा ने न केवल कानूनी मामलों में, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में भी अपनी छाप छोड़ी है। जब भी कोई बेईमानी या धोखाधड़ी का जिक्र होता है, लोग ‘420’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं।

यह धारा अब भले ही कानूनी किताबों में न हो, लेकिन इसका सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व बना रहेगा। भारतीय समाज में ‘420’ शब्द हमेशा एक पहचान के रूप में रहेगा, जो धोखाधड़ी और चालाकी को दर्शाता है।

420 को किस नाम जाएगा:-नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद, अब धोखाधड़ी और बेईमानी से संबंधित अपराधों के लिए धारा 318 का प्रावधान है। इस बदलाव के साथ, कानूनों में संशोधन और नए धारा नंबर लागू किए गए हैं।

नई धारा 318 का परिचय

धारा 318 अब धोखाधड़ी और बेईमानी के अपराधों के लिए उपयोग की जाएगी। यह नई धारा अब दस्तावेजी रूप से इन अपराधों को कवर करेगी और कानूनी प्रक्रिया में इसका उपयोग होगा।जो की पहले 420 की धारा का उपयोग किया जाता था। 

420 का बोलबाला :-

धारा 420 भारतीय दंड संहिता (IPC) की एक धारा थी, जो धोखाधड़ी और बेईमानी के मामलों में लागू होती थी। यह धारा भारतीय समाज में इतनी गहराई से रच-बस गई थी कि इसका उल्लेख आम बोलचाल में भी होता रहा है।

धारा 420 का सांस्कृतिक महत्व

  1. सामाजिक संदर्भ: धारा 420 का उपयोग चालाक और धोखेबाज लोगों को संदर्भित करने के लिए किया जाता था। लोग मजाक में या गंभीरता से किसी को ‘420’ कहते थे, जिससे यह एक सांस्कृतिक पहचान बन गई।
  2. फिल्म और साहित्य: राज कपूर की फिल्म “श्री 420” ने इस धारा को और भी लोकप्रिय बना दिया। फिल्म ने ‘420’ को एक सांस्कृतिक प्रतीक बना दिया, जिसे हर कोई समझ सकता था।
  3. आम बोलचाल: ‘चारसौबीसी मत करो’ या ‘वह तो पूरा 420 है’ जैसी कहावतें आम बोलचाल का हिस्सा बन गई थीं। माता-पिता भी अपने बच्चों को फटकारते हुए इस धारा का उल्लेख करते थे।

धारा 318 का आगमन

नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के साथ, धारा 420 को धारा 318 ने कानूनी तौर पर स्थानापन्न कर दिया है। हालांकि, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि धारा 318 समाज और संस्कृति में धारा 420 की तरह अपनी जगह बना पाती है या नहीं।

सोशल मीडिया प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्मों पर धारा 420 के हटने पर लोगों की प्रतिक्रियाएं स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। लोग इस धारा की कमी महसूस कर रहे हैं और इसका सांस्कृतिक महत्व नहीं भूल पा रहे हैं। धारा 420 ने लोगों के दिलों-दिमाग में इतनी गहरी छाप छोड़ी है कि इसे भुला पाना मुश्किल है।

धारा 420 का भविष्य

हालांकि, धारा 318 कानूनी दस्तावेजों और प्रक्रियाओं में धारा 420 की जगह ले चुकी है, लेकिन आम बोलचाल में ‘420’ का बोलबाला बना रहेगा। यह धारा अब केवल कानूनी किताबों से हटा दी गई है, लेकिन इसका सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व हमेशा जीवित रहेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *