Iran ने अमेरिका को भेजा ‘त्राहिमाम’ संदेश, नेतन्याहू ने ठुकराया

यह दिन इतिहास में दर्ज हो चुका है। इस दिन इजरायल ने वह कर दिखाया जो अब तक किसी ने सोचने की हिम्मत नहीं की थी। जाने पूरी खबर ? Iran and Israel

Iran and Israel War:-17 जून 2025 की सुबह – एक ऐसा दिन जिसने मध्य पूर्व के नक्शे को हिला कर रख दिया। इस दिन इजरायल ने एक बड़ा सैन्य ऑपरेशन चलाया जिसका नाम था “ऑपरेशन राइजिंग लॉयन”। इस ऑपरेशन ने सीधे-सीधे ईरान को निशाने पर लिया और उसकी कमर तोड़ दी। मिसाइलें, फाइटर जेट्स, हाइपरसोनिक हथियार – सब कुछ इतनी तेजी और ताकत से इस्तेमाल किए गए कि ईरान की सेना और सरकार समझ ही नहीं पाई कि हुआ क्या है।

🔥 ईरान के बंकरों में छिपे नेता

इस हमले के बाद ईरान के राष्ट्रपति महमूद पेजेशकियान और सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई खुद को बंकरों में छिपाने पर मजबूर हो गए। माहौल इतना गंभीर हो गया कि ईरान को अमेरिका तक को संदेश भेजना पड़ा कि हालात बहुत खराब हैं – कुछ करो। लेकिन अमेरिका की तरफ से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आई।

🔥 नेतन्याहू का मकसद – तानाशाही का अंत

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस बार कोई समझौता नहीं चाहते। उनका सीधा कहना है कि जब तक ईरान में तानाशाही खत्म नहीं होगी और एक लोकतांत्रिक सरकार नहीं आएगी, तब तक इजरायल चैन से नहीं बैठेगा।

नेतन्याहू खुद भी 17 जून को एक बंकर में मौजूद थे, लेकिन अपनी जान बचाने के लिए नहीं, बल्कि ईरान की तबाही को अपनी आंखों से देखने के लिए। वह इस ऑपरेशन की पूरी निगरानी कर रहे थे और इसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए खुद ग्राउंड पर उतर आए।

🚀 कैसे हुआ हमला?

इजरायल ने सबसे पहले ईरान के इस्फहान शहर के पास मौजूद मिसाइल ठिकानों पर हमला किया। इसके बाद फोर्डो अंडरग्राउंड न्यूक्लियर साइट पर हाइपरसोनिक मिसाइलें दागी गईं। इसके साथ ही नतांज नाम का यूरेनियम संवर्धन केंद्र भी मिसाइलों और बमों की पहली बारिश में ही तबाह हो गया।

नेतन्याहू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा –

“हम एक तानाशाही और कट्टरपंथी ईरानी सरकार से लड़ रहे हैं जो हमें नष्ट करने के लिए परमाणु बम बना रही है। इजरायल आजादी की रक्षा कर रहा है – न केवल अपने लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए।”

🧔 नेतन्याहू की कहानी – ‘मिस्टर सिक्योरिटी’ की वापसी

75 साल के बेंजामिन नेतन्याहू इजरायल के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले नेता हैं। 1996 में उन्होंने पहली बार सत्ता संभाली और तभी से उन्हें “मिस्टर सिक्योरिटी” कहा जाने लगा।

उनकी सोच हमेशा से साफ रही –

“मजबूत रहो, तकनीक का इस्तेमाल करो, और दुश्मनों को दूर रखो।”

उन्होंने फलस्तीनियों से किसी भी शांति समझौते का विरोध किया और ओस्लो समझौते को गलत बताया। उनका मानना था कि शांति की बातें करने से हमले नहीं रुकते, ताकत दिखानी जरूरी होती है।

📉 लेकिन हर दौर अच्छा नहीं होता…

7 अक्टूबर 2023 को हमास ने जब इजरायल पर बड़ा हमला किया, तब नेतन्याहू की रणनीति और मोसाद दोनों फेल हो गए। गाजा से रॉकेट बरसे, सैकड़ों नागरिक मारे गए और देशभर में हंगामा मच गया। लोग नेतन्याहू के खिलाफ सड़कों पर उतर आए।

उस वक्त ज्यूडिशरी (न्यायपालिका) और सरकार आमने-सामने थी। फिर 2024 में गाजा में युद्ध अपराध के आरोपों को लेकर इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) ने नेतन्याहू के खिलाफ वारंट भी जारी कर दिया।

💥 लेकिन नेतन्याहू रुके नहीं

ICC के वारंट के बावजूद नेतन्याहू ने पीछे हटने से इनकार कर दिया। उन्होंने गाजा को जमींदोज कर दिया और हमास की पूरी लीडरशिप को खत्म कर दिया – यह्या शिनवार, इस्माइल हनिया जैसे नाम मिटा दिए गए।

इसके बाद बारी आई लेबनान की। वहां घुसकर इजरायली सेना ने हिजबुल्लाह पर हमला किया और उसके प्रमुख हसन नसरल्ला को भी मार गिराया। फिर हूती विद्रोहियों के यमन वाले अड्डों को भी ध्वस्त किया गया।

☢️ अब निशाना ईरान – और सीधा दिल पर

बेंजामिन नेतन्याहू को सबसे बड़ा खतरा ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम से है। उनका मानना है कि अगर ईरान ने परमाणु बम बना लिया, तो यह इजरायल के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा। इसलिए इस बार उन्होंने ‘Rise up and kill the enemy’ वाली नीति अपनाई और सीधे ईरान के टॉप आर्मी चीफ और परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बना लिया।

अब अगला टारगेट है – खुद खामेनेई

🔄 दुनिया क्या कह रही है?

डोनाल्ड ट्रंप इस पूरे ऑपरेशन के पक्ष में हैं। जबकि ओबामा के दौर में नेतन्याहू ने कहा था कि ईरान पर बम गिराओ, लेकिन उस वक्त अमेरिका ने मना कर दिया था। अब हालात बदल चुके हैं।

ईरान की मिसाइलें अब तेल अवीव तक पहुंच रही हैं, लेकिन नेतन्याहू बेअसर हैं। कुछ आलोचक कह रहे हैं कि शायद नेतन्याहू ये युद्ध अपने खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार केसों से ध्यान हटाने के लिए भी कर रहे हैं।

लेकिन उनके एक्शन देखकर लगता है कि वो इसे इजरायल के भविष्य की लड़ाई मानते हैं।

🛡️ रक्षा मंत्री भी हटाए, अब कोई नरमी नहीं

नेतन्याहू के रक्षा मंत्री योआव गैलेंट ने जब इस पर नरमी की सलाह दी, तो नेतन्याहू ने उन्हें तुरंत हटा दिया। वो अब किसी भी तरह की सॉफ्ट अप्रोच के खिलाफ हैं।

ऑपरेशन राइजिंग लॉयन शायद उनका आखिरी और सबसे बड़ा दांव है – वो इतिहास में “इजरायल का रक्षक” बनकर याद रहना चाहते हैं।

दिल की सर्जरी के बाद उन्हें पेसमेकर लगा है, लेकिन उनके इरादे और हिम्मत पहले से कहीं ज़्यादा मजबूत हैं।

अब सवाल यह है कि क्या खामेनेई का अंत करीब है? क्या ईरान में नई सरकार आएगी? क्या नेतन्याहू इस लड़ाई को वहीं तक ले जाएंगे जहां तानाशाही पूरी तरह टूट जाए?

या फिर ये लड़ाई पूरे मध्य-पूर्व को फिर से जंग के दौर में धकेल देगी?

जो भी हो, ऑपरेशन राइजिंग लॉयन से एक बात साफ हो चुकी है – इजरायल अब चुप नहीं बैठेगा, और नेतन्याहू अब किसी माफ़ी के मूड में नहीं हैं।

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