karnataka news:- कर्नाटक सरकार मुसलमानों को सरकारी निर्माण (सिविल) ठेकों में आरक्षण देने पर विचार कर रही है। इसके चलते विपक्षी दल, खासकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), ने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया है,जाने पूरी खबर ?
karnataka news :-कर्नाटक में सरकारी ठेकों में मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण देने के विचार पर हाल ही में विवाद उठ खड़ा हुआ है। मीडिया में यह खबर आई कि कर्नाटक सरकार सिविल ठेकों में मुसलमानों के लिए चार फीसदी आरक्षण पर विचार कर रही है। इस खबर के बाद राज्य में राजनीतिक माहौल गरमा गया और खासकर भाजपा ने इस प्रस्ताव का जोरदार विरोध किया।
विरोध बढ़ता देख, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया की सरकार ने अपनी स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की। मुख्यमंत्री कार्यालय ने एक बयान जारी कर कहा कि फिलहाल ऐसा कोई आधिकारिक प्रस्ताव सरकार के पास नहीं है। उन्होंने बताया कि मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग जरूर की गई है, लेकिन इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। सरकार का यह स्पष्टीकरण विवाद के तुरंत बाद आया, जिससे साफ हुआ कि यह अभी केवल विचाराधीन है, कोई ठोस योजना नहीं है।
विवाद का कारण
अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलती है, तो यह आरक्षण उन सरकारी ठेकों के लिए होगा जिनकी लागत एक करोड़ रुपये तक होगी। राज्य में वर्तमान में सरकारी ठेकों में कुल 43 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। इसमें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को 24 प्रतिशत आरक्षण मिलता है और बाकी ओबीसी (अन्य पिछड़ी जाति) के लिए आरक्षित है। यदि मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है, तो कर्नाटक में सरकारी ठेकों में आरक्षण की सीमा बढ़कर 47 प्रतिशत हो जाएगी। साथ ही, ठेकों की सीमा को भी एक करोड़ से बढ़ाकर दो करोड़ तक करने का विचार किया जा रहा है।
यह आरक्षण ओबीसी वर्ग में 2बी कैटेगरी के तहत दिए जाने पर विचार हो रहा है। यह कैटेगरी पहले से ही ओबीसी के अंतर्गत आती है, और इसी के तहत मुसलमानों को आरक्षण देने की बात की जा रही है।
भाजपा
इस मामले पर भाजपा ने तीखा विरोध जताया है। भाजपा नेता अमित मालवीय ने इस प्रस्ताव को संविधान का उल्लंघन बताते हुए कहा कि यह धर्म आधारित आरक्षण का उदाहरण है और भारत के संविधान की धारा 15 और 16 के खिलाफ है। धारा 15 और 16 में धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव करने की मनाही है। मालवीय ने यह भी सवाल उठाया कि अगर मुसलमानों को यह आरक्षण दिया जाएगा, तो इसका असर एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों के मौजूदा आरक्षण पर कैसे पड़ेगा।
भाजपा का कहना है कि धर्म आधारित आरक्षण संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और इससे समाज में असंतुलन पैदा हो सकता है। उनका मानना है कि आरक्षण का आधार केवल सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन होना चाहिए, न कि धर्म।
सरकार
कर्नाटक सरकार के लिए यह एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है। एक ओर, मुसलमानों के प्रतिनिधि और कुछ संगठनों द्वारा इस आरक्षण की मांग की जा रही है, तो दूसरी ओर भाजपा जैसी विपक्षी पार्टियां इस पर जोरदार आपत्ति उठा रही हैं। सरकार के लिए इस मसले को सुलझाना चुनौतीपूर्ण हो गया है, क्योंकि यह एक ऐसा मुद्दा है जो सामाजिक संतुलन और संविधान दोनों से जुड़ा हुआ है।
फिलहाल, कर्नाटक सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि मुसलमानों के लिए आरक्षण देने का कोई अंतिम प्रस्ताव नहीं है, लेकिन मांगें जरूर उठाई गई हैं। आगे सरकार को इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करना होगा, ताकि किसी भी समुदाय को नुकसान न पहुंचे और संविधान के मूल सिद्धांतों का भी पालन हो सके।