L&T Chairman:-हाल ही में इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति द्वारा कर्मचारियों से 70 घंटे काम करने की सलाह देने के बाद एक बड़ी बहस शुरू हुई। जाने इसके बारे में ? 

L&T Chairman Office Working:-हाल ही में, लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने हफ्ते में 90 घंटे काम करने की बात कही। इससे पहले इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने भी 70 घंटे काम करने का सुझाव दिया था। दोनों उद्योगपतियों के इन बयानों ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या भारत में इतने लंबे घंटे काम करना संभव है और क्या यह सही दिशा में एक कदम है?
क्या है 90 घंटे काम का मतलब?
90 घंटे काम का मतलब है कि आपको रोज़ करीब 13 घंटे काम करना होगा और सातों दिन काम करना पड़ेगा। इसमें कोई छुट्टी नहीं होगी। इसे लागू करने का मकसद है कि भारत चीन और अमेरिका जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके।
लेकिन, क्या यह व्यवहारिक है?
लोगों की राय क्या कहती है?
- सोशल और पारिवारिक जिम्मेदारियां
भारत में लोग सिर्फ ऑफिस का काम नहीं करते, बल्कि उनके पास सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियां भी होती हैं। बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों का ख्याल, घर के काम—ये सब भारतीय समाज की सामान्य दिनचर्या का हिस्सा हैं। ऐसे में, 90 घंटे का वर्क वीक कैसे संभव हो सकता है? - मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर
कई विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार इतने लंबे घंटे काम करने से व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से थक जाएगा। इससे डिप्रेशन, चिंता और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं। - काम करने की उत्पादकता
काम करने की क्षमता का भी एक दायरा होता है। अगर व्यक्ति लगातार 12-13 घंटे काम करेगा, तो उसकी उत्पादकता कम हो जाएगी। गलतियां होने की संभावना बढ़ेगी और इससे काम की गुणवत्ता प्रभावित होगी। - स्मार्ट वर्क बनाम हार्ड वर्क
आज के समय में “स्मार्ट वर्क” की जरूरत है। यानी, ऐसा काम करना जो कम समय में ज्यादा असर दिखाए। अगर व्यक्ति केवल घंटों की गिनती बढ़ाएगा, तो यह असरदार नहीं होगा।
महिला
महिलाएं ऑफिस के साथ-साथ घर की जिम्मेदारियां भी संभालती हैं। अगर उनसे 90 घंटे काम की अपेक्षा की जाएगी, तो यह उनके लिए अत्यधिक दबाव वाला हो जाएगा। ऐसे में, उनके लिए 8-10 घंटे का काम पर्याप्त होता है।
सरकार और इन्फ्रास्ट्रक्चर
कई लोग इस बात पर जोर देते हैं कि भारत में बुनियादी सुविधाएं अभी इतनी विकसित नहीं हैं कि 90 घंटे काम का कल्चर लागू हो सके।
- यातायात समस्याएं: रोजाना आने-जाने में ही कई घंटे बर्बाद हो जाते हैं।
- आराम की जगह: ऑफिस में आराम या ब्रेक के लिए उचित व्यवस्था जरूरी है।
- मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं: काम के दबाव को झेलने के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना भी आवश्यक है।
क्या है सही वर्क कल्चर?
- काम और आराम का संतुलन
एक व्यक्ति को रोज़ाना 8-10 घंटे से ज्यादा काम नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, हफ्ते में कम से कम दो दिन की छुट्टी होनी चाहिए, ताकि व्यक्ति अपने परिवार के साथ समय बिता सके और खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से तरोताजा कर सके। - स्मार्ट वर्क को अपनाना
कंपनियों को तकनीकी सुधारों और स्मार्ट वर्क पर ध्यान देना चाहिए। इससे कम समय में बेहतर नतीजे मिल सकते हैं। - मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल
कंपनियों को अपने कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए। काम के साथ-साथ, ब्रेक और मनोरंजन भी जरूरी हैं।
भारत जैसे देश में, जहां समाजिक और पारिवारिक जीवन को बहुत महत्व दिया जाता है, 90 घंटे काम करना व्यावहारिक नहीं लगता। यह न सिर्फ मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालता है, बल्कि काम की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
काम करने का सही तरीका वही है, जिसमें संतुलन हो—काम, आराम, और व्यक्तिगत जीवन के बीच। ऐसा वर्क कल्चर अपनाने से ही हम असल में उत्पादक और खुशहाल समाज बना सकते हैं।