Maharashtra Elections:-महाराष्ट्र की आर्थिक स्थिति पिछले कुछ वर्षों में काफी कमजोर हो गई है। राज्य पर पहले से ही भारी कर्ज का बोझ है, जो 2014 में लगभग 2.94 लाख करोड़ रुपये था, जाने क्या क्या वादे होने वाला है ?
Maharashtra Elections:-महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीति में वादों और मुफ्त सुविधाओं (फ्रीबीज) की चर्चा गर्म है। प्रमुख गठबंधन महायुती (जिसमें बीजेपी, शिवसेना का शिंदे गुट, और एनसीपी का अजित पवार गुट शामिल हैं) और महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन (जिसमें कांग्रेस, एनसीपी शरद पवार गुट, और उद्धव ठाकरे की शिवसेना शामिल हैं) दोनों ने अपने-अपने वादों की लंबी फेहरिस्त जनता के सामने रखी है।
महाराष्ट्र पर पहले से भारी कर्ज
महाराष्ट्र की आर्थिक स्थिति पर ध्यान दिया जाए तो राज्य पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। 2014 में महाराष्ट्र का कर्ज लगभग 2.94 लाख करोड़ रुपये था, जो बढ़कर 2023 तक 7.82 लाख करोड़ रुपये हो गया है। सरकारी अनुमान के अनुसार, 2024-25 तक यह कर्ज 7.83 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है, जो राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का लगभग 18.35 प्रतिशत होगा। वित्तीय दबाव और बढ़ते कर्ज को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि महाराष्ट्र सरकार के लिए इन वादों को पूरा करना एक बड़ा आर्थिक बोझ बन सकता है।
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महायुती और महाविकास अघाड़ी के वादों का असर
महायुती और महाविकास अघाड़ी ने जनता से कई वादे किए हैं, लेकिन इन वादों को पूरा करने के लिए भारी रकम खर्च करनी पड़ेगी। महायुती ने अपने चुनावी घोषणापत्र में ‘लाडकी बहिन योजना’ के तहत महिलाओं को हर महीने 2100 रुपये देने का वादा किया है। इस योजना का लाभ करीब ढाई करोड़ महिलाओं तक पहुंचाने का लक्ष्य है। अगर इस योजना को लागू किया गया, तो इससे राज्य के खजाने पर 63,000 करोड़ रुपये सालाना का बोझ पड़ सकता है। वहीं, एमवीए गठबंधन ने अपने वादों में ‘महालक्ष्मी योजना’ के तहत महिलाओं को हर महीने 3000 रुपये देने का वादा किया है। इस योजना पर अनुमानित खर्च लगभग 90,000 करोड़ रुपये सालाना आएगा।
बाकी वादों पर खर्च
महायुती ने कई और योजनाओं का वादा किया है, जैसे:
- किसानों का कर्ज माफ करना,
- किसानों के लिए सम्मान निधि को 12,000 से बढ़ाकर 15,000 रुपये करना,
- बेरोजगार छात्रों को 10,000 रुपये का स्टाइपेंड देना,
- और राज्य में 25 लाख नौकरियों का सृजन करना।
वहीं, एमवीए ने भी कुछ अन्य महत्वपूर्ण वादे किए हैं, जैसे:
- बेरोजगार युवाओं को हर महीने 4000 रुपये का स्टाइपेंड,
- किसानों को समय पर कर्ज चुकाने पर 50,000 रुपये का इनाम,
- और मुफ्त स्वास्थ्य बीमा व मुफ्त दवाओं की योजना।
इन वादों के कारण महाराष्ट्र की आर्थिक स्थिति और अधिक कठिन हो सकती है, क्योंकि राज्य का राजकोषीय घाटा भी मान्य सीमा से अधिक हो चुका है। वित्तीय सलाहकारों और अधिकारियों का कहना है कि राज्य नई वित्तीय योजनाओं का बोझ उठाने में सक्षम नहीं है।
महाराष्ट्र के नेताओं का जनता को लुभान
मुफ्त सुविधाएं और योजनाएं देकर वोटरों को लुभाना महाराष्ट्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष का आम चलन बन गया है। लेकिन, इससे राज्य के खजाने पर भारी दबाव पड़ता है। महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार, महायुती, ने ‘लाडकी बहिन योजना’ का प्रचार शुरू कर दिया है और इसके प्रचार पर ही करीब 200 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। इस योजना के तहत 1500 रुपये प्रति महीने की राशि दी जा रही है, जिसे सत्ता में वापस आने पर बढ़ाकर 2100 रुपये करने का वादा किया गया है।
नेताओं के बयान
बीजेपी के एक सांसद धनंजय महादिक ने हाल ही में अपने बयान में कहा कि अगर किसी कांग्रेस रैली में ‘लाडकी बहिन योजना’ का लाभ लेने वाली महिलाएं बैठी दिखें, तो उनकी तस्वीरें ले ली जाएं। यह बयान विवादों में आ गया, क्योंकि इसे महिलाओं पर दबाव बनाने की कोशिश के रूप में देखा गया।
महाराष्ट्र में चुनावी माहौल में भले ही मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की होड़ मची हो, लेकिन राज्य की माली हालत को देखते हुए इन वादों का आर्थिक बोझ उठाना मुश्किल हो सकता है। इन योजनाओं को लागू करने से राज्य के वित्तीय संसाधनों पर भारी दबाव पड़ेगा और कर्ज के बोझ में और बढ़ोतरी हो सकती है।