Muslim Marriage:-29 साल बाद अलग हुए एआर रहमान और सायरा बानू तलाक के पीछे इमोशनल स्ट्रेन, मेहर की रस्म पर चर्चा

Muslim Marriage:-एआर रहमान और उनकी पत्नी सायरा बानू के तलाक की खबर ने उनके प्रशंसकों और संगीत प्रेमियों को स्तब्ध कर दिया है। करीब 29 साल की शादी के बाद, दोनों ने अपने रिश्ते को खत्म करने का फैसला किया, जाने पूरी खबर ? Muslim Marriage

Mehr in Muslim Marriage:-मुस्लिम शादी को अक्सर एक ‘कॉन्ट्रैक्ट’ (अक़द) की तरह देखा जाता है, जो पति और पत्नी के बीच एक कानूनी और धार्मिक समझौता है। लेकिन, इसका अर्थ केवल कानूनी करार तक सीमित नहीं है। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक संस्कार भी है, जिसमें हक़ मेहर का विशेष स्थान होता है।


हक़ मेहर क्या है?

हक़ मेहर शादी का एक अहम हिस्सा है। यह पति द्वारा पत्नी को शादी के समय दी जाने वाली रकम, गहने, ज़मीन या अन्य मूल्यवान संपत्ति हो सकती है। इसका उद्देश्य पत्नी को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है ताकि अगर भविष्य में शादी खत्म हो जाए या तलाक हो, तो पत्नी अपने जीवन को सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से चला सके।

  1. तत्काल मेहर (मुअज्जल)
    यह वह मेहर है जो शादी के समय या शादी के तुरंत बाद अदा किया जाता है। अगर पति इस मेहर को अदा नहीं करता है, तो पत्नी दांपत्य जीवन शुरू करने से इनकार कर सकती है।
  2. बाद में दिया जाने वाला मेहर (मुवज्जल)
    यह मेहर तलाक, पति की मृत्यु, या किसी अन्य सहमति पर आधारित घटना के बाद अदा किया जाता है।

मेहर की रकम कैसे तय होती है?

मेहर की रकम की कोई न्यूनतम या अधिकतम सीमा नहीं है। यह दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति, सामाजिक मानदंडों, और दूल्हे की क्षमता के आधार पर तय होती है।

यदि शादी के समय मेहर तय न किया गया हो, तो इसे उचित मेहर (मेहर ए मिस्ल) कहा जाता है। इस स्थिति में पत्नी के परिवार की अन्य महिलाओं को दिए गए मेहर के आधार पर यह तय किया जाता है।


तलाक और मेहर

तलाक की स्थिति में पति को मेहर की रकम अदा करनी होती है। एआर रहमान और सायरा बानू के तलाक के मामले में भी यही नियम लागू होगा। तलाक के बाद, सायरा बानू अपने हक़ मेहर का दावा कर सकती हैं।


पत्नी के अधिकार (तलाक या मृत्यु के बाद)

  1. अगर मेहर अदा नहीं किया गया है, तो पत्नी शादीशुदा जीवन शुरू करने से इनकार कर सकती है।
  2. तलाक के बाद मेहर तुरंत अदा करना जरूरी है।
  3. पत्नी की मृत्यु के बाद, उसके उत्तराधिकारी मेहर की रकम का दावा कर सकते हैं।
  4. पति की मृत्यु की स्थिति में पत्नी अपने मेहर की मांग पति की संपत्ति से कर सकती है।

मेहर और दहेज का अंतर

मेहर को दहेज से जोड़ना गलत है।

  • दहेज: यह आमतौर पर पत्नी के परिवार द्वारा दूल्हे को दिया जाता है, जो एक सामाजिक कुप्रथा है।
  • मेहर: यह पति द्वारा पत्नी को दिया जाता है, जो महिला के अधिकार और सुरक्षा का प्रतीक है।

मेहर की वसूली का समय और नियम

  1. यदि मेहर तुरंत अदा करना है, तो पत्नी को इसकी मांग की तारीख से तीन साल के भीतर कोर्ट में केस करना होगा।
  2. तलाक के बाद, मेहर की मांग तलाक की तारीख से तीन साल के भीतर करनी होती है।
  3. पति की मृत्यु की स्थिति में, विधवा को सूचना मिलने के तीन साल के भीतर केस करना होगा।

शरीयत में मेहर

इस्लाम में मेहर को महिला के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की सुरक्षा के रूप में देखा जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि विवाह टूटने के बाद भी महिला आत्मनिर्भर रह सके।


मेहर का उद्देश्य एक महिला को शादी में समान अधिकार और सुरक्षा प्रदान करना है। इसे महिला के सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया है, और यह पति-पत्नी के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध का प्रतीक है।

एआर रहमान और सायरा बानू के तलाक के मामले ने इस विषय को फिर से चर्चा में ला दिया है। उम्मीद है कि इस उदाहरण के माध्यम से, मेहर की सही समझ और महत्व लोगों के बीच स्पष्ट होगा।

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