GPS (Global Positioning System) एक नेविगेशन सिस्टम है, जिसमें 30-32 सैटेलाइट पृथ्वी के चारों तरफ़ लगातार घूम रहे होते हैं। जाने इसके बारे में इस ब्लॉग में ? 

Myanmar Earthquake:-कुछ दिन पहले म्यांमार में एक बड़ा भूकंप आया। हालात बेहद खराब हो गए। मकान गिर गए, लोग मलबे में दब गए, और कई इलाकों में सड़कें और ब्रिज भी टूट गए। ऐसे में भारत ने तुरंत मदद का हाथ बढ़ाया और एक सैन्य ऑपरेशन लॉन्च किया — ऑपरेशन ब्रह्मा।
इसी के तहत भारतीय वायुसेना ने अपने बड़े-बड़े एयरक्राफ्ट भेजे। पहला विमान C-130J सुपर हरक्यूलिस दिल्ली से राहत और बचाव दल लेकर म्यांमार रवाना हुआ।
सब कुछ ठीक चल रहा था… लेकिन जब भारतीय वायुसेना के ये विमान म्यांमार के एयरस्पेस में पहुंचे, तो पायलटों ने महसूस किया कि उनके GPS सिस्टम अजीब व्यवहार कर रहे हैं।
मतलब — जिस लोकेशन पर वो विमान था, उसका सिग्नल कुछ और बता रहा था। रास्ता बदलने की कोशिश कर रहे थे। ये बिल्कुल वैसा था जैसे किसी ने रास्ते के सारे साइन बोर्ड उलट-पुलट कर दिए हों।
📌 ये हुआ कैसे? क्या है GPS स्पूफिंग?
चलिए इसे बहुत सरल भाषा में समझते हैं।
👉 जब हम गूगल मैप खोलते हैं या कोई फ्लाइट नेविगेशन सिस्टम चलता है, तो वो एक सैटेलाइट से सिग्नल लेकर बताता है कि आप कहां हैं।
अब इन सैटेलाइट्स से जो सिग्नल आते हैं — वो बहुत कमजोर (weak) होते हैं।
कोई चाहे तो जमीन से ही या आसमान से ज्यादा ताकतवर नकली सिग्नल भेज सकता है, जो आपके डिवाइस तक पहले पहुंच जाए।
आपका मोबाइल या एयरक्राफ्ट वही नकली सिग्नल पकड़ लेता है और मान लेता है कि वही सही है।
बस इसी टेक्निक को कहा जाता है — GPS Spoofing.
इसमें आपका डिवाइस सोचता है कि वो दिल्ली में है, जबकि असल में वो कहीं और हो सकता है।
📍 ऐसा क्यों किया जाता है?
-
दुश्मन की फौज या एयरक्राफ्ट को रास्ता भटकाने के लिए।
-
किसी मिसाइल को गलत लोकेशन पर भेजने के लिए।
-
किसी इलाके में घुसपैठ रोकने के लिए।
-
और कभी-कभी तो विरोधी सिर्फ टेक्निकल सिस्टम को तंग करने के लिए भी कर देते हैं।
📌 भारत के विमानों ने कैसे बचाव किया?
अब ज़रा सोचिए — अगर एक पायलट को पता ही न चले कि वो गलत रास्ते पर जा रहा है, तो हादसा भी हो सकता था।
लेकिन भारतीय वायुसेना के पास सिर्फ GPS ही नहीं होता।
हर एयरक्राफ्ट में एक पुराना लेकिन बेहद भरोसेमंद सिस्टम होता है — INS यानी इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम।
👉 यह सिस्टम पुराने ज़माने में समुद्री जहाज़ भी इस्तेमाल करते थे। इसमें जहाज या विमान के हिलने, मुड़ने, और तेज़-धीमा होने का डेटा लिया जाता है और उसी के आधार पर दिशा और दूरी तय की जाती है।
इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि
✅ इसे किसी सैटेलाइट की ज़रूरत नहीं।
✅ कोई इसे स्पूफ या हैक नहीं कर सकता।
✅ GPS फेल हो जाए, तो भी रास्ता नहीं भटकता।
भारतीय पायलटों ने फ़ौरन GPS को छोड़कर INS मोड ऑन किया और अपनी फ्लाइट को सुरक्षित ऑपरेट किया।
📌 ये स्पूफिंग कर कौन रहा था?
अब असली सवाल ये है कि — आखिर ये कर कौन रहा था?
सूत्रों की मानें तो शक की सुई चीन और उसके समर्थित उग्रवादी गुटों की तरफ जा रही है।
क्योंकि
👉 म्यांमार में चीन की गतिविधियां काफी ज्यादा हैं।
👉 वहां चीन कई हथियारबंद गुटों को सपोर्ट करता है।
👉 और पहले भी कई बार वहां GPS स्पूफिंग जैसी घटनाएं हो चुकी हैं।
📌 सिर्फ म्यांमार नहीं, भारत में भी हो रही GPS स्पूफिंग
अब चौंकाने वाली बात ये है कि भारत में भी स्पूफिंग हो रही है।
लोकसभा में सिविल एविएशन मंत्रालय ने जवाब दिया कि अमृतसर और जम्मू के आस-पास नवंबर 2023 से फरवरी 2025 के बीच 465 बार स्पूफिंग के मामले सामने आए हैं।
यानी दुश्मन अब बॉर्डर के आस-पास अपने तरीके से फ्लाइट्स को परेशान करने की कोशिश कर रहा है।
📌 दुनिया भर में GPS स्पूफिंग बढ़ रही है
एक इंटरनेशनल एविएशन ग्रुप है — OPSGROUP, जिसमें करीब 8000 पायलट और एविएशन एक्सपर्ट जुड़े हैं।
इन्होंने पिछले साल सितंबर में एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें बताया गया कि
साल 2024 में GPS स्पूफिंग के मामले 500% बढ़े।
पहले जहां रोज़ 300 फ्लाइट्स में ऐसा हो रहा था, अब वो आंकड़ा बढ़कर 1500 फ्लाइट रोज़ हो गया है।
👉 GPS स्पूफिंग आज के दौर का सबसे खतरनाक साइलेंट हथियार बन गया है।
👉 भारत और वायुसेना इसे रोकने के लिए पूरी तरह तैयार है।
👉 INS जैसे पुराने और भरोसेमंद सिस्टम आज भी हमारी बड़ी ताकत बने हुए हैं।
👉 आने वाले दिनों में सैटेलाइट और साइबर सुरक्षा को लेकर भारत को और भी ज्यादा सतर्क रहना होगा।