Online companies:-आजकल हम पड़ोस की किराना दुकान से कम ओर ऑनलाइन वाले 8-10 मिनट कन्सेट से ज्यादा खरीददारी करते है। लेकिन सरकार के द्वारा इस बात का पता लगाया जा रहा है की यह ऑनलाइन कंपनियां किराना स्टोर्स को किस तरह नष्ट कर सकती है , आएगे जानते है इसके बारे में….
Online companies:-क्विक कॉमर्स के तेजी से बढ़ते प्रभाव ने हमारे खरीदारी के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है। अब सामान खरीदने के लिए दुकान पर जाने की जरूरत नहीं होती; बस एक ऐप पर कुछ क्लिक करें, और कुछ ही मिनटों में आपकी जरूरत का सामान आपके दरवाजे पर पहुंच जाता है। इस सुविधा ने जहां ग्राहकों को बेहतरीन अनुभव दिया है, वहीं इसके कुछ अनचाहे परिणाम भी हैं, खासकर स्थानीय किराना दुकानदारों के लिए।
पड़ोस के किराना दुकानदारों पर असर
आपके पड़ोस में जो किराना दुकानें सालों से चली आ रही हैं, वे अब क्विक कॉमर्स की वजह से गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रही हैं। ये दुकानदार, जिनका पूरा जीवन इन दुकानों पर निर्भर है, अब अपनी बिक्री में भारी गिरावट देख रहे हैं। जहां एक समय में ग्राहक उनके पास हर छोटी-बड़ी जरूरत के लिए आते थे, अब वे क्विक कॉमर्स प्लेटफार्मों की ओर मुड़ रहे हैं। इसके कारण न केवल उनकी बिक्री में गिरावट आई है, बल्कि उनके आत्मविश्वास और मनोबल में भी कमी आई है।
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सरकारी मंत्रालयों की चिंता
क्विक कॉमर्स के बढ़ते प्रभाव ने सरकार का भी ध्यान खींचा है। कई मंत्रालयों ने जांच शुरू की है कि ये कंपनियां, जैसे कि ब्लिंकइट, स्विगी इंस्टामार्ट, ज़ेप्टो, बिग बास्केट, और फ्लिपकार्ट मिनट्स, किस तरह से पारंपरिक किराना कारोबार को प्रभावित कर रही हैं। केंद्र सरकार ने अभी तक कोई सख्त नीतिगत कदम नहीं उठाया है, लेकिन जांच के शुरुआती चरण में होने के कारण, भविष्य में इस पर कड़ी निगरानी की संभावना है।
सरकारी हस्तक्षेप की संभावनाएं
वाणिज्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या क्विक कॉमर्स कंपनियों के व्यापार मॉडल में कुछ बदलाव की जरूरत है ताकि वे स्थानीय कारोबार को नुकसान पहुंचाए बिना काम कर सकें। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने इस विषय पर चिंता जाहिर की है और छोटे व्यापारियों के हितों की सुरक्षा के लिए कार्रवाई करने के संकेत दिए हैं।
क्विक कॉमर्स का आर्थिक पहलू
वहीं, क्विक कॉमर्स के समर्थक इस बात पर जोर देते हैं कि ये कंपनियां न केवल तकनीकी प्रगति ला रही हैं, बल्कि नए रोजगार के अवसर भी पैदा कर रही हैं। इसके अलावा, ये विदेशी निवेश को आकर्षित कर रही हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को भी फायदा हो रहा है। कुछ विशेषज्ञ इसे ऑटोमोबाइल क्रांति से तुलना करते हैं, जब बैलगाड़ियों की जगह मोटर गाड़ियों ने ले ली थी।
समाधान के संभावित रास्ते
कुछ इंडस्ट्री विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार स्थानीय किराना दुकानों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाकर एक मध्य मार्ग निकाल सकती है। यदि किराना दुकानदारों को भी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर लाया जाए और उन्हें क्विक कॉमर्स की तरह तेज और कुशल सेवाएं देने में मदद की जाए, तो दोनों क्षेत्रों में तालमेल बैठ सकता है। इससे न केवल पारंपरिक दुकानों का अस्तित्व बचा रहेगा, बल्कि वे आधुनिक उपभोक्ताओं की जरूरतों को भी पूरा कर सकेंगी।
क्विक कॉमर्स और पारंपरिक किराना दुकानों के बीच इस जंग में संतुलन बनाना आवश्यक है। जहां एक ओर हमें तकनीकी प्रगति और सुविधा का स्वागत करना चाहिए, वहीं दूसरी ओर हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इसका असर छोटे व्यापारियों की रोजी-रोटी पर न पड़े। यह देखने की बात होगी कि सरकार और इंडस्ट्री मिलकर इस समस्या का समाधान कैसे निकालते हैं, ताकि दोनों ही पक्षों को लाभ मिल सके।