Operation Sindoor : भारत ने सीमा पार कर आतंक और पाकिस्तानी सेना को पहुँचाया गहरा झटका।

पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर भारत की सहनशीलता की परीक्षा लेने की कोशिश की, लेकिन इस बार जवाब बहुत ही कड़ा और योजनाबद्ध था। जाने इसके बारे में ? Operation Sindoor

Operation Sindoor:-पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सिर्फ सैन्‍य जवाब तक खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि अब हर मोर्चे पर पाकिस्‍तान को घेरने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। एक ओर जहां ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकी ठिकानों और पाकिस्‍तानी सेना के एयरबेस को निशाना बनाया गया, वहीं दूसरी तरफ भारत ने कूटनीतिक स्‍तर पर भी बड़ा कदम उठाया है।

भारत ने अब ईरान और अफगानिस्‍तान के साथ मिलकर एक नया ट्रेड फ्रंट तैयार करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा दिए हैं। इस फ्रंट का मकसद न सिर्फ व्यापारिक फायदे लेना है, बल्कि पाकिस्तान की रीढ़ पर आर्थिक चोट करना भी है। खास बात यह है कि अफगानिस्‍तान की मौजूदा तालिबान सरकार भी इसमें भारत का साथ दे रही है।

तालिबान, जो कभी पाकिस्‍तान के करीब था, अब भारत के साथ खड़ा!

जब अगस्त 2021 में अमेरिका और नाटो सेनाएं अफगानिस्‍तान से चली गईं, तो तालिबान ने काबुल पर कब्‍जा कर लिया। उस समय पाकिस्‍तान में खुशी का माहौल था। फौज और नेता खुलेआम जश्‍न मना रहे थे। वजह साफ थी—उन्‍हें उम्‍मीद थी कि तालिबान अब भारत के खिलाफ उनका साथ देगा।

लेकिन वक्‍त के साथ हालात बदलते गए। तालिबान और पाकिस्‍तान के रिश्‍ते बिगड़ने लगे। पाकिस्‍तान ने अफगान शरणार्थियों को जबरन देश से निकाला, यहां तक कि अपनी ही सीमा में घुसकर एयर स्‍ट्राइक का दावा कर डाला। इससे तालिबान नाराज़ हो गया और अब वह भारत की तरफ झुकता नजर आ रहा है।

अफगानिस्‍तान को चाबहार पोर्ट से जोड़ना

तालिबान की मौजूदा सरकार अब अपने देश की अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूत करना चाहती है। इसके लिए उसे अंतरराष्‍ट्रीय बाजारों तक पहुंच चाहिए। अभी तक अफगानिस्‍तान का व्‍यापार पाकिस्‍तान के कराची और ग्‍वादर पोर्ट से होता था, लेकिन अब वह इस निर्भरता को खत्‍म करना चाहता है।

ऐसे में ईरान का चाबहार पोर्ट एक बेहतर विकल्‍प बनकर उभरा है। यह पोर्ट भारत ऑपरेट करता है और यहां से अफगानिस्‍तान को आसानी से व्‍यापार का रास्‍ता मिल सकता है। तालिबान चाहता है कि भारत इस कनेक्शन में उसकी मदद करे, और भारत के लिए यह पाकिस्‍तान को किनारे करने का सुनहरा मौका है।

डोभाल की रणनीति और जयशंकर की कूटनीति

पिछले दिनों भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अफगान और ईरानी अधिकारियों से सीधे बातचीत की। वहीं विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी अफगान समकक्ष से बात कर तालिबान सरकार को इस योजना में शामिल करने की नींव रखी।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, डोभाल ने ईरान के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों से INSTC यानी इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर पर भी चर्चा की। यह एक ऐसा कॉरिडोर है जो भारत, ईरान और रूस को जोड़ता है, और इसमें अफगानिस्‍तान की भूमिका अहम हो सकती है।

पाकिस्‍तान को तीन तरफ से चोट

  1. सैन्‍य कार्रवाई: ऑपरेशन सिंदूर में आतंकी कैंप और पाक सेना के एयरबेस तबाह।

  2. कूटनीति: दुनियाभर में भारत का प्रतिनिधिमंडल पाकिस्‍तान की पोल खोल रहा है।

  3. आर्थिक मोर्चा: नया ट्रेड रूट तैयार कर अफगानिस्‍तान को पाकिस्‍तानी बंदरगाहों पर निर्भरता से आजाद करना।

इन तीनों मोर्चों से भारत ने यह साफ कर दिया है कि अब सिर्फ सीमित जवाब नहीं, बल्कि हर दिशा से पाकिस्‍तान को घेरा जाएगा।

ईरान को भी मिलेगा फायदा

इस पूरे समीकरण में ईरान भी पीछे नहीं है। वह चाबहार पोर्ट को रीजनल ट्रांजिट हब बनाना चाहता है। भारत और अफगानिस्‍तान की भागीदारी से उसका रसूख इस क्षेत्र में बढ़ेगा और आर्थिक फायदा भी होगा।

अगर यह रणनीति पूरी तरह सफल हो जाती है, तो पाकिस्तान को न सिर्फ आर्थिक नुकसान होगा, बल्कि उसका क्षेत्रीय प्रभाव भी कमजोर पड़ेगा। अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी को खोना उसकी विदेश नीति की सबसे बड़ी विफलता मानी जाएगी।

भारत अब सिर्फ जवाबी कार्रवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि वह लंबे समय की रणनीति पर काम कर रहा है। अफगानिस्तान को पाकिस्तान से दूर कर और चाबहार के जरिए वैकल्पिक व्यापारिक रास्ता देकर भारत ने एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक चल दिया है। यह गठबंधन न सिर्फ पाकिस्तान को घेरने वाला है, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की भूराजनीति को नए सिरे से गढ़ सकता है।

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