मोदी कैबिनेट द्वारा जाति जनगणना को मंजूरी दिए जाने के बाद देश की राजनीति में हलचल मच गई है। यह फैसला केवल आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि जाने इसके बारे में ? 

PM Modi:-मोदी सरकार के जाति जनगणना कराने के फैसले से देश की राजनीति में हलचल मच गई है। ये सिर्फ एक आंकड़ों की कवायद नहीं है, बल्कि ये आने वाले चुनावों में सत्ता की चाबी बदल सकता है। खासकर पश्चिम बंगाल जैसी राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में, जहां जाति, धर्म और क्षेत्रीय पहचान की राजनीति गहराई तक फैली हुई है, इसका असर सीधा और बड़ा हो सकता है। और सबसे ज्यादा असर पड़ सकता है मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) पर।
1. ममता बनर्जी की रणनीति को कैसे चुनौती दे सकता है जाति जनगणना?
ममता बनर्जी ने अपनी राजनीति की नींव “मां, माटी, मानुष” के नारे पर रखी थी। उन्होंने बंगाली अस्मिता, गरीबों और अल्पसंख्यकों को साथ लेकर एक समावेशी राजनीति की तस्वीर पेश की है। लेकिन जाति जनगणना से यह समावेशी गठबंधन खतरे में पड़ सकता है।
TMC का बड़ा वोट बैंक मुस्लिम और निचली जातियों से आता है। अगर जाति जनगणना के आंकड़ों के आधार पर OBC या अन्य जातियों को नई राजनीतिक पहचान और अधिकार मिलने लगते हैं, तो वोटों का ध्रुवीकरण होना तय है। यानी हर जाति अपने अधिकारों के लिए जागरूक होकर अपनी अलग राजनीति की मांग कर सकती है। इससे ममता के बनाए ‘सभी को साथ लेकर चलने’ वाले मॉडल में दरार आ सकती है।
2. बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों पर ‘बड़ा खेला’?
जाति जनगणना के जरिए यदि केंद्र सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या मुस्लिमों की मौजूदगी को आंकड़ों के जरिए सामने लाने की कोशिश करती है, तो यह मुद्दा चुनावी राजनीति में एक बार फिर गर्म हो सकता है।
भाजपा लंबे समय से ममता सरकार पर “घुसपैठियों को संरक्षण देने” का आरोप लगाती रही है। यदि जनगणना से ऐसे आंकड़े सामने आते हैं जो इस आरोप को बल देते हैं, तो इससे भाजपा को बंगाल में हिंदू वोटों को एकजुट करने में मदद मिल सकती है। 2026 के चुनाव से पहले ये BJP के लिए एक बड़ा हथियार बन सकता है।
3. BJP का पुराना प्रदर्शन और आगे की रणनीति
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बंगाल में 40% वोट शेयर और 18 सीटें जीत ली थीं, जो उसके लिए बड़ी सफलता थी। भाजपा ने यह प्रदर्शन हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के बल पर किया था, खासकर ऊपरी जातियों और OBC वोटर्स में अच्छी पकड़ बनाकर।
अब जाति जनगणना के जरिए अगर BJP यह दिखा सके कि तृणमूल कांग्रेस की नीतियां खास समुदायों को ही लाभ पहुंचाने वाली रही हैं (जैसे मुस्लिम OBC), तो वह हिंदू वोटरों में यह संदेश देने में कामयाब हो सकती है कि “हमें नजरअंदाज किया जा रहा है”। इस तरह, BJP इन नाराज वोटरों को अपने पक्ष में कर सकती है।
4. TMC की चुनौती: संगठन मजबूत, लेकिन समीकरण कमजोर पड़ सकते हैं
ममता बनर्जी की पार्टी का संगठन बहुत मजबूत है। खासकर जमीनी स्तर पर उनके कार्यकर्ताओं का नेटवर्क गांव-गांव फैला हुआ है। मुस्लिमों की 27% आबादी और बड़ी संख्या में दलित-पिछड़े वोटर अब भी ममता के साथ खड़े हैं। इसलिए, जाति जनगणना के बावजूद ममता का वोट बैंक पूरी तरह खिसक जाएगा, ऐसा कहना जल्दबाज़ी होगी।
ममता पहले भी बीजेपी के NRC और CAA जैसे मुद्दों को सफलतापूर्वक चुनौती दे चुकी हैं। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया था कि वह फर्जी वोटर बनाकर और नागरिकता के नाम पर वोटर लिस्ट से छेड़छाड़ कर रही है। अब जाति जनगणना के जरिए बीजेपी की कोशिश अगर कुछ खास समुदायों को ‘गैर भारतीय’ बताने की होती है, तो ममता एक बार फिर भावनात्मक कार्ड खेल सकती हैं – बंगाली पहचान, मानवता और धर्मनिरपेक्षता का।
5. विपक्ष की भूमिका और भ्रम का फायदा BJP को
जाति जनगणना के मुद्दे पर कांग्रेस और लेफ्ट ने भले ही समर्थन जताया हो, लेकिन खुद राहुल गांधी बिहार के कास्ट सर्वे को “फर्जी” बता चुके हैं। इससे विपक्ष का सामूहिक स्टैंड कमजोर पड़ता है और बीजेपी को यह कहने का मौका मिलता है कि विपक्ष सिर्फ राजनीति कर रहा है, जबकि वह सामाजिक न्याय के लिए काम कर रही है।
यह भ्रम का माहौल बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है क्योंकि वो इसे एक “स्पष्ट लक्ष्य” और “साफ नीयत” के तौर पर पेश कर सकती है।
जाति जनगणना आने वाले महीनों में बंगाल की राजनीति को पूरी तरह बदल सकती है। यह ममता बनर्जी के लिए एक दोधारी तलवार साबित हो सकती है। एक तरफ जहां उनके वोट बैंक में बिखराव का खतरा है, वहीं दूसरी तरफ उनकी लोकप्रियता, जमीनी संगठन और बंगाली अस्मिता का मुद्दा उन्हें मजबूती भी दे सकता है।