करोड़ो सालो से हम इस पृथ्वी पर रहते है न जाने कहा से यह जीवन चलना शुरू हुआ है इस धरती पर कही साल गुजार रखे है किसी ने यह बोला की धरती चपटी है तो किसी ने कहा की यह एक अंडे के जैसा कहा पर यह किसने कहा है की यह पृथ्वी गोल है जाने इसके बारे में |
आज हम आपको दुनिया के ऐसे सवाल का जवाब देने वाले है की जो हम पढ़ते रहते है पर इसका जवाब जानने की कोशिश नहीं करते है हम इस सवाल का जवाब देने की कोशिश जरूर करेंगे की यह यह पृथ्वी गोल किसने बोला था किस माध्यम से बोला था
सबसे पहले पृथ्वी के गोल होने का सिद्धांत 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में भारतीय ऋषि वशिष्ठ ने दिया था। उन्होंने कहा था कि पृथ्वी एक गोलाकार पिंड है, जो अपने अक्ष पर घूमता है। हालांकि, वशिष्ठ के इस सिद्धांत को उस समय बहुत अधिक मान्यता नहीं मिली।
पश्चिमी सभ्यता में, पृथ्वी के गोल होने का सिद्धांत सबसे पहले यूनानी दार्शनिक पाइथागोरस ने दिया था। उन्होंने कहा था कि पृथ्वी एक गोलाकार पिंड है, क्योंकि सभी वस्तुओं का आकार गोल होता है। हालांकि, पाइथागोरस के इस सिद्धांत को भी उस समय बहुत अधिक मान्यता नहीं मिली।
पृथ्वी के गोल होने का सिद्धांत को सर्वप्रथम वैज्ञानिक आधार पर सिद्ध करने का श्रेय ग्रीक दार्शनिक एराटोस्थनीज को जाता है। उन्होंने 240 ईसा पूर्व में एक प्रयोग करके यह सिद्ध किया कि पृथ्वी एक गोलाकार पिंड है। एराटोस्थनीज ने देखा कि जब सूर्योदय होता है, तो सिनाई पहाड़ों पर सूर्य की किरणें सीधी टकराती हैं, जबकि अलेक्जेंड्रिया में सूर्य की किरणें 7 डिग्री झुकी हुई दिखाई देती हैं। उन्होंने इस अंतर को पृथ्वी की त्रिज्या के रूप में मापा और यह पाया कि पृथ्वी की त्रिज्या लगभग 40,000 किलोमीटर है।
एराटोस्थनीज के इस सिद्धांत को उस समय के लोगों ने बहुत स्वीकार किया। हालांकि, मध्य युग में, धार्मिक मान्यताओं के कारण, इस सिद्धांत को फिर से चुनौती दी गई। इस दौरान, पृथ्वी को सपाट मानने वाले सिद्धांत का प्रचार किया गया।
पृथ्वी के गोल होने का सिद्धांत को अंततः 16वीं शताब्दी में पुनः स्वीकार किया गया। इस समय, पोलैंड के खगोलशास्त्री निकोलस कोपरनिकस ने सूर्य को ब्रह्मांड का केंद्र मानने वाले सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत के अनुसार, पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक गोलाकार कक्षा में घूमती है। कोपरनिकस के सिद्धांत ने पृथ्वी के गोल होने के सिद्धांत को और अधिक मजबूती प्रदान की।
17वीं शताब्दी में, गैलीलियो गैलीली ने अपने दूरबीन के माध्यम से खगोलीय पिंडों का अवलोकन किया और पृथ्वी के गोल होने के प्रमाण प्रस्तुत किए। उन्होंने देखा कि चंद्रमा पर पर्वत और घाटियां हैं, जो केवल एक गोलाकार पिंड पर ही हो सकती हैं। उन्होंने यह भी देखा कि शुक्र का आकार चंद्रमा की तरह पूर्ण चक्र नहीं होता है, बल्कि चक्राकार चपटा होता है। यह भी पृथ्वी के गोल होने का प्रमाण है।
गैलीलियो के अवलोकनों ने पृथ्वी के गोल होने के सिद्धांत को अंततः अंतिम रूप दे दिया। आज, यह सिद्धांत वैज्ञानिक दृष्टि से सर्वसम्मत है।
पृथ्वी के गोल होने के सिद्धांत को मानने के लिए लोग तैयार नहीं थे, क्योंकि उस समय लोगों का मानना था कि पृथ्वी सपाट है। इसके कई कारण थे:
- लोगों को लगता था कि अगर पृथ्वी गोल होती, तो लोग किनारे से गिर जाते।
- लोगों को लगता था कि अगर पृथ्वी गोल होती, तो जहाज क्षितिज के नीचे गायब नहीं होते।
- लोगों को लगता था कि अगर पृथ्वी गोल होती, तो सूर्य और चंद्रमा अलग-अलग आकारों में दिखाई देते।
हालांकि, एराटोस्थनीज और अन्य वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों और अवलोकनों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी एक गोलाकार पिंड है।