Public Opinion:-उत्तराखंड सरकार ने अपने राज्य में एक अनोखा फैसला ले सकती है ऐसा माना जाता है की अपने स्थापना दिवस पर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागु कर सकती है , जाने पूरी खबर?
Public Opinion On UCC:-उत्तराखंड में 9 नवंबर को राज्य स्थापना दिवस के मौके पर समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू होने की अटकलें जोरों पर हैं। राज्य सरकार का कहना है कि यूसीसी लागू होने के बाद विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे मामलों में सभी नागरिकों पर समान कानून लागू होगा। वर्तमान में, गोवा एकमात्र भारतीय राज्य है जहां यूसीसी लागू है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में वर्णित है, जो सभी नागरिकों पर समानता का दृष्टिकोण स्थापित करने की बात करता है।
यूसीसी के लिए उत्तराखंड में बनी 9 सदस्यीय समिति ने हाल ही में अपनी अंतिम बैठक के बाद कहा कि नियम और कानून तैयार करने की प्रक्रिया पूरी हो गई है। राज्य सरकार का मानना है कि यूसीसी लागू होने से मुस्लिम महिलाओं को समानता का अधिकार मिलेगा और उनके सामाजिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त होगा। हालांकि, इस मुद्दे पर अलग-अलग राय भी देखने को मिल रही है, खासकर मुस्लिम समुदाय की महिलाओं की, जो इसे लेकर सवाल खड़े कर रही हैं।
मुस्लिम महिलाओं की राय
देहरादून की वरिष्ठ अधिवक्ता और समाजसेविका रजिया बेग ने इस मामले पर अपने विचार साझा किए। उनका कहना है कि महिलाओं को समान अधिकार मिलना चाहिए, लेकिन केवल एक कानून के जरिए ही नहीं। उन्होंने कहा, “महिलाओं को हर क्षेत्र में समान अधिकार मिलना चाहिए। शरीयत ने महिलाओं को 1400 साल पहले ही जायदाद में हिस्सा दिया था,
लेकिन आज भी व्यवहारिक तौर पर उन्हें समानता नहीं मिल रही है।” रजिया का मानना है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड में शरीयत के नियमों में बदलाव किया जा रहा है, जो ठीक नहीं है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि यदि समान कानून की बात हो रही है, तो कुछ जनजातियों को इससे बाहर क्यों रखा गया है? उनके अनुसार, यदि सरकार वास्तव में मुस्लिम महिलाओं का उत्थान चाहती है, तो संसद और विधानसभा में उनके लिए आरक्षण की भी बात करनी चाहिए।
लिविंग रिलेशनशिप
मोहसिना नामक एक अन्य महिला ने बताया कि सरकार लिविंग रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन की भी बात कर रही है, जिससे यह कानूनी रूप से मान्य हो जाएगा। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में किसी भी धर्म में इसे ठीक नहीं माना जाता है। उनका सवाल है कि यदि इसे कानूनी रूप से स्वीकार कर लिया जाता है, तो लिविंग रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चों की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या ऐसी महिलाओं को समाज आसानी से स्वीकार करेगा जो पहले किसी लिविंग रिलेशनशिप में रह चुकी हैं?
व्यवहार में समानता की मांग
साबरा ने बताया कि कानून के समान होने से ज्यादा जरूरी है कि व्यवहार में समानता हो। उन्होंने कहा, “हम सभी साथ रहते हैं और यदि सबके लिए एक समान कानून हो तो यह बेहतर होगा। लेकिन, केवल कानून से ही समानता नहीं आ सकती। रोजगार में भी भेदभाव नहीं होना चाहिए। धर्म और जाति के आधार पर यदि भेदभाव किया जाता है, तो यह समानता का उल्लंघन है।” उन्होंने यह भी कहा कि वोट डालते वक्त तो धर्म का कोई भेदभाव नहीं देखा जाता, तो फिर समाज में व्यवहार में भी ऐसा ही होना चाहिए।
एडवोकेट आशिमा
वहीं, देहरादून की एक अन्य अधिवक्ता आशिमा ने सवाल उठाते हुए कहा कि एक राज्य सरकार को यूसीसी लाने की क्या आवश्यकता है, जबकि संविधान ने आर्टिकल 14 से 18 तक समानता का अधिकार पहले ही दिया है। उन्होंने कहा कि यदि कोई ऐसा कानून लाना है, तो इसे केंद्र सरकार के माध्यम से पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि उत्तराखंड में सभी समुदायों और जनजातियों को क्यों नहीं शामिल किया गया?
विरोध और समर्थन
यूसीसी को लेकर मुस्लिम समुदाय में अलग-अलग विचार सामने आ रहे हैं। कुछ इसे समानता की ओर कदम मान रहे हैं, जबकि कुछ का मानना है कि इसमें शरीयत के नियमों में बदलाव करना ठीक नहीं है। रजिया बेग और अन्य मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि यदि सरकार मुस्लिम महिलाओं का उत्थान करना चाहती है, तो इसके लिए उन्हें समाज के मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए, ना कि केवल एक कानून लाकर इसे पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए।
यूसीसी लागू होने के बाद, तीन तलाक, हलाला, और इद्दत जैसी प्रथाओं पर रोक लग जाएगी, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कानून सभी समुदायों में समानता और समरसता ला पाएगा?