Rajya Sabha में विपक्ष का हंगामा, चेयरमैन धनखड़ ने प्रमोद तिवारी को दी नियम पालन की सलाह

Rajya Sabha:-संसद का शीतकालीन सत्र लोकतंत्र की उस प्रक्रिया का हिस्सा है जहां देश की नीतियों और कानूनों पर विचार किया जाता है, जाने पूरी खबर ? Rajya Sabha

Rajya Sabha:-संसद का सत्र देश की सबसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया है, जहां सरकार के कामकाज, नए कानूनों और भविष्य की नीतियों पर चर्चा होती है। लेकिन इस बार शीतकालीन सत्र में अब तक का माहौल उम्मीदों से बिल्कुल अलग रहा है। आज चौथे दिन भी संसद के दोनों सदनों—लोकसभा और राज्यसभा—का कामकाज हंगामे की वजह से बाधित रहा।

शीतकालीन सत्र का आरंभ

संसद का यह सत्र 25 नवंबर को शुरू हुआ था, लेकिन शुरुआत से ही सत्र अनुत्पादक साबित हो रहा है। विपक्ष मणिपुर हिंसा और संभल में हुई घटनाओं जैसे मुद्दों को लेकर लगातार सरकार पर हमला बोल रहा है। इन विवादित मुद्दों पर बहस की मांग को लेकर विपक्ष ने हर दिन संसद में हंगामा किया है। इसका परिणाम यह हुआ कि अब तक कोई ठोस चर्चा या निर्णय नहीं हो पाया है।

आज का घटनाक्रम

गुरुवार सुबह 11 बजे जब राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई, तो कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने एक खास मुद्दे पर बहस की मांग की। उन्होंने चेयरमैन जगदीप धनखड़ की ओर इशारा करते हुए कहा, “सर, आपके बिना तो पत्ता भी नहीं हिल सकता।”

इस पर चेयरमैन ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए हंसी-मजाक भरे अंदाज में कहा, “यह बात आप जयराम रमेश जी को भी बताइए। वह मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं। बिना चेयरमैन की सहमति के कोई काम नहीं होता, और मैं सहमति देने को तैयार हूं, लेकिन इसके लिए नियमों का पालन करना जरूरी है।”

इसके बाद प्रमोद तिवारी ने फिर से जोर दिया कि उन्हें बहस की अनुमति दी जाए। इस दौरान चेयरमैन ने नियमों की किताब उठाई और नियम बताने लगे। उनकी इस प्रतिक्रिया पर संसद में मौजूद कुछ सांसद हंसने लगे। हालांकि, इस मजेदार पल के बीच विपक्ष का हंगामा जारी रहा, जिससे कार्यवाही को 12 बजे तक स्थगित करना पड़ा।

पहले तीन दिनों का हाल

इससे पहले, सत्र के पहले दिन 75वें संविधान दिवस के मौके पर भी संसद का कामकाज नहीं हो सका था। दूसरे और तीसरे दिन भी विपक्षी दलों ने मणिपुर और अन्य मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश की। बुधवार को तो लोकसभा और राज्यसभा दोनों को केवल एक घंटे के भीतर स्थगित करना पड़ा।

असहमति या समाधान

विपक्ष की मांग है कि मणिपुर और संभल जैसी घटनाओं पर गहन चर्चा हो, जबकि सरकार का कहना है कि कामकाज बाधित करना समाधान का तरीका नहीं है। विपक्षी सांसदों का आरोप है कि सरकार मुद्दों से भाग रही है, जबकि सरकार का दावा है कि वह चर्चा के लिए तैयार है, बशर्ते विपक्ष संसद की गरिमा बनाए रखे।

अब देखना होगा कि शीतकालीन सत्र के बाकी दिनों में संसद अपने मुख्य उद्देश्य—कानून बनाने और नीतियों पर चर्चा—को पूरा कर पाती है या नहीं। फिलहाल, हंगामे और स्थगन का यह सिलसिला कब थमेगा, यह कहना मुश्किल है। लेकिन जनता की उम्मीदें हमेशा संसद से जुड़ी रहती हैं कि उनके मुद्दों पर गंभीरता से विचार किया जाएगा।

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