क्या किसी कहानी को पर्दे पर लाना ‘सच को दिखाना’ होता है, या फिर किसी खास सोच को बढ़ावा देना? जाने इसके बारे में ? 

Udaipur Files:-राजस्थान के उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या पर बनी फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ अभी रिलीज़ भी नहीं हुई है, लेकिन इस पर विवाद गहराता जा रहा है। इस फिल्म को लेकर अब देश के दो बड़े धार्मिक और सामाजिक संगठनों – जमीयत उलेमा-ए-हिंद और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) आमने-सामने आ चुके हैं।
📌 सुप्रीम कोर्ट में याचिका, फिल्म को रोकने की मांग
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की है। उनका कहना है कि फिल्म इस्लाम धर्म को गलत तरीके से पेश करती है और इससे देश का सांप्रदायिक माहौल खराब हो सकता है।
उनका आरोप है कि फिल्म में कन्हैयालाल की हत्या को एक खास धार्मिक नजरिये से दिखाया गया है, जिससे एक पूरे समुदाय को बदनाम करने की कोशिश हो रही है।
जमीयत की ही तरह जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने भी इस फिल्म के विरोध में कदम उठाए हैं। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद नाजिम ने कहा है कि फिल्म के पीछे “सस्ती लोकप्रियता और सियासी साजिश” छिपी है और अगर यह फिल्म रिलीज हुई, तो इससे धर्मों के बीच तनाव और नफरत फैल सकती है।
📌 विश्व हिंदू परिषद का पलटवार – “सच क्यों छिपाना चाहते हो?”
वहीं, विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने जमीयत की याचिका का जोरदार विरोध किया है। परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता अमितोष पारीक ने कहा कि:
“अगर जिहाद के नाम पर की गई कन्हैयालाल की हत्या का सच सामने आता है, तो इससे जमीयत को दिक्कत क्यों है?”
उन्होंने आरोप लगाया कि जमीयत-उलेमा-ए-हिंद हमेशा आतंकवादियों के समर्थन में खड़ी रही है और उसने अतीत में कई आतंकी आरोपियों को कानूनी मदद भी दी है।
विहिप का कहना है कि “फिल्में समाज का आईना होती हैं। ‘उदयपुर फाइल्स’ भी उसी तरह की फिल्म है, जैसे पहले ‘कश्मीर फाइल्स’, ‘केरल स्टोरी’ या ‘साबरमती रिपोर्ट’ रही हैं। अगर उन फिल्मों से माहौल नहीं बिगड़ा, तो फिर अब क्या दिक्कत है?”
📌 क्या दिखाती है फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’?
हालांकि फिल्म का ट्रेलर या पूरी कहानी सार्वजनिक नहीं हुई है, लेकिन यह साफ है कि फिल्म कन्हैयालाल हत्याकांड पर आधारित है। 2022 में उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की चाकू से हत्या कर दी गई थी। हत्यारों ने इस वारदात का वीडियो भी बनाया और उसे सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया था। उन्होंने इसे “ईशनिंदा का बदला” बताया था।
फिल्म को लेकर दावा किया जा रहा है कि यह उसी घटना को दर्शाती है, जिसमें धार्मिक कट्टरता, जिहाद के नाम पर हत्या और उस सोच के प्रचार को उजागर किया गया है।
📌 जमीयत की दलीलें और मांगें
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फिल्म धार्मिक भावनाओं को आहत करती है
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इससे एक पूरे समुदाय को टारगेट किया गया है
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यह सांप्रदायिक सौहार्द्र को नुकसान पहुंचा सकती है
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सेंसर बोर्ड ने इसे पास कैसे किया, इस पर भी सवाल उठाए गए हैं
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राष्ट्रपति से भी दखल देने की अपील की गई है, ताकि फिल्म को रोका जा सके
📌 विहिप का समर्थन और चेतावनी
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फिल्म को पूरी तरह से समर्थन
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सच को सामने आने से रोका नहीं जाना चाहिए
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फिल्मों को बैन करने की कोशिश अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला है
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विहिप का आरोप – “जमीयत का नारा ही ‘सिर तन से जुदा’ है।”
🤔 अब सवाल यह है…
क्या एक फिल्म, जो एक सच्ची घटना पर आधारित है, उसे रिलीज़ से रोका जाना चाहिए?
या फिर क्या सच को दिखाना भी अब समाज के कुछ हिस्सों को असहज कर देता है?
देश में “फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन” और “धार्मिक भावनाओं की रक्षा” – इन दोनों के बीच की लकीर बहुत बारीक होती जा रही है।
‘उदयपुर फाइल्स’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि अब आवाज और विरोध का मुद्दा बन गई है।
एक पक्ष कह रहा है – “सच सामने आना चाहिए”,
जबकि दूसरा कहता है – “ऐसी सच्चाई समाज को तोड़ती है।”
अब देखना यह है कि क्या यह फिल्म रिलीज़ हो पाएगी या फिर इसे भी विवादों की भेंट चढ़ा दिया जाएगा।