Uttarakhand Government:-भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) ने उत्तराखंड सरकार से राहत और बचाव कार्यों में इस्तेमाल किए गए हेलीकॉप्टर सेवाओं का 213 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान तुरंत करने की मांग की है, जाने पूरा मामला ?
Uttarakhand Government:-उत्तराखंड सरकार पर भारतीय वायु सेना (IAF) का 213 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान सिरदर्द बन गया है। यह बकाया पिछले 24 सालों में जमा हुआ है, जिसमें वायुसेना द्वारा राज्य में आपदा राहत और बचाव कार्यों के लिए इस्तेमाल किए गए हेलीकॉप्टर सेवाओं का खर्च शामिल है।
बकाया
वायुसेना ने राज्य सरकार को 91 लंबित बिलों का ब्यौरा देते हुए एक पत्र भेजा है। इनमें से कुछ बिल तो नौ नवंबर 2000 के हैं, जिस दिन उत्तराखंड का गठन हुआ था। उसी दिन राज्य पर 15 लाख रुपये की उधारी हो गई थी। अब तक कई बार पत्र भेजे गए, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
2013 की आपदा से बड़ा उधार
213 करोड़ रुपये की कुल राशि में से 52.60 करोड़ रुपये केवल 2013 की केदारनाथ आपदा के दौरान वायुसेना द्वारा किए गए राहत कार्यों पर खर्च हुए थे। इसके अलावा, वन विभाग पर 3.20 करोड़ रुपये बकाया है, जो जंगलों की आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर सेवाओं का भुगतान है।
विभाग
चूंकि यह मामला 24 साल पुराना है, इसलिए राज्य सरकार के कई विभागों को इन बकाया बिलों की जानकारी नहीं थी। अब इन बिलों का सत्यापन किया जा रहा है। सचिव (आपदा प्रबंधन) विनोद कुमार सुमन के मुताबिक, आपदा प्रबंधन विभाग पर 67 लाख रुपये का बकाया था, जिसमें से 24 लाख का भुगतान हो चुका है। शेष राशि जल्द ही चुकाई जाएगी।
वित्त मंत्री
उत्तराखंड के वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि 213 करोड़ रुपये की राशि बहुत बड़ी है। इसे चुकाना राज्य के लिए कठिन है। केंद्र सरकार से इस मामले में सहायता लेने की योजना बनाई जा रही है।
वायुसेना
ऐसा नहीं है कि वायुसेना ने बकाया भुगतान के लिए हाल ही में पत्र भेजा हो। 2024 में भी वायुसेना मुख्यालय की ओर से 27 अगस्त, 18 सितंबर, और 19 सितंबर को पत्र भेजे गए थे। लेकिन राज्य सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई। आखिरकार, 22 अक्टूबर को भारत सरकार के ज्वाइंट सेक्रेटरी एयर वाइस मार्शल विक्रम गुरू ने विस्तृत पत्र भेजा, जिससे सरकार हरकत में आई।
सरकार
राज्य सरकार अब सभी विभागों की बैठक बुलाकर बिलों को सत्यापित करने और भुगतान की प्रक्रिया को तेज करने की योजना बना रही है। लेकिन 24 साल पुराने इन बिलों का हिसाब-किताब करना आसान नहीं है।
यह मामला केवल एक बकाया राशि का नहीं है, बल्कि आपदा प्रबंधन और प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण भी है। अब देखना यह है कि सरकार इस भारी-भरकम बकाये का निपटारा कैसे करती है।