आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अब केवल टेक्नोलॉजी की दुनिया तक सीमित नहीं रहा, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा बदलाव ला रहा है। जाने इसके बारे में ? 

AI Education:-आज के समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सिर्फ तकनीकी दुनिया तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह अब हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी और शिक्षा में भी बड़ी भूमिका निभाने लगा है। आने वाले कुछ ही सालों में शायद ऐसा कोई इंसान न बचे जो किसी न किसी रूप में AI का इस्तेमाल न कर रहा हो। इसी भविष्य की तैयारी करते हुए साउथ कोरिया ने एक ऐसा कदम उठाया है जो शिक्षा जगत में क्रांतिकारी साबित हो सकता है।
अब AI किताबें पढ़ रहे हैं साउथ कोरिया के बच्चे
जी हां, साउथ कोरिया शायद दुनिया का पहला देश बन गया है, जहां स्कूलों में AI टेक्नोलॉजी से चलने वाली किताबों का इस्तेमाल शुरू हो गया है। निक्केई एशिया की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2025 से लेकर अब तक देश के लगभग 30% स्कूलों में प्राइमरी से लेकर हाई स्कूल तक के छात्रों को AI-बेस्ड डिजिटल किताबों से पढ़ाया जा रहा है।
इन किताबों का इस्तेमाल खासतौर पर अंग्रेज़ी और गणित जैसे विषयों में किया जा रहा है, जहां छात्रों को इंटरैक्टिव और पर्सनलाइज्ड लर्निंग का अनुभव मिल रहा है। यह बदलाव पारंपरिक पढ़ाई के तरीकों को पूरी तरह से बदलने की क्षमता रखता है।
शिक्षा मंत्रियों की बैठक में हुआ बड़ा ऐलान
साउथ कोरिया में 9 साल बाद APEC शिक्षा मंत्रियों का शिखर सम्मेलन हुआ, जिसमें इस नई पहल की जानकारी दी गई। माना जा रहा है कि यह फैसला देश की शिक्षा प्रणाली को भविष्य के लिए तैयार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
AI के साथ शिक्षक भी होंगे तैयार
हालांकि, इस नई पहल को लागू करना इतना आसान नहीं है। सरकार को शिक्षकों को AI टेक्नोलॉजी की ट्रेनिंग देने की चुनौती भी झेलनी पड़ रही है, ताकि वे इन नए टूल्स का सही तरीके से इस्तेमाल कर सकें। बच्चों को पढ़ाने का तरीका बदल रहा है, तो शिक्षकों को भी उस बदलाव के साथ कदम मिलाना होगा।
सिर्फ स्कूल नहीं, अब कॉलेज भी तैयार हों
AI का असर अब सिर्फ स्कूलों तक नहीं रुका है। अब चर्चा इस बात की भी हो रही है कि AI को हायर एजुकेशन यानी कॉलेज और यूनिवर्सिटीज़ में भी कैसे इस्तेमाल किया जाए।
LinkedIn के को-फाउंडर रीड हॉफमैन ने अपने पॉडकास्ट “Possible” में कहा कि आजकल के छात्र असाइनमेंट में AI का इस्तेमाल कर रहे हैं। कई बार वे जो निबंध जमा करते हैं, वे उनके खुद के नहीं बल्कि AI से जनरेट किए गए होते हैं। ऐसे में कॉलेजों को भी यह समझने की जरूरत है कि वे AI का विरोध नहीं, बल्कि सही इस्तेमाल कैसे करें।
AI को परीक्षक के रूप में भी देखा जा सकता है
हॉफमैन का मानना है कि भविष्य में AI को को-एग्जामिनर यानी सह-परीक्षक के तौर पर शामिल किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, निबंधों की जांच में AI यह बता सकता है कि छात्र ने कितनी गहराई से विषय को समझा है। साथ ही, ओरल टेस्ट (मौखिक परीक्षा) पर ज़ोर देने की सलाह भी दी गई है, जहां छात्रों की असली सोच और समझ सामने आ सके।
AI अब हमारे जीवन का हिस्सा बनता जा रहा है और शिक्षा भी इससे अछूती नहीं रही। साउथ कोरिया ने दिखा दिया है कि अगर तकनीक का सही दिशा में इस्तेमाल किया जाए, तो यह शिक्षा की गुणवत्ता को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकती है। बाकी देशों को भी इससे सीख लेनी चाहिए और सोचने की जरूरत है कि कैसे AI को अपनाकर शिक्षा को और बेहतर बनाया जा सकता है।