22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने 26 निर्दोष नागरिकों की बेरहमी से हत्या कर दी। धर्म पूछकर किए गए इस नरसंहार ने पूरे देश को झकझोर दिया। जाने पूरी खबर इस ब्लॉग में ? 

India-Pakistan War:-22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में जो हुआ, उसने पूरे देश को झकझोर दिया। पाकिस्तान की ओर से आए आतंकियों ने 26 निर्दोष लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी — और वह भी धर्म पूछकर। यह सिर्फ हमला नहीं था, बल्कि इंसानियत पर हमला था।
इस नृशंस हमले के बाद भारत ने सख्त कदम उठाए। भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया। लेकिन इसके बाद पाकिस्तान ने बौखलाकर भारत पर ड्रोन और मिसाइल से हमला करने की कोशिश की। चौंकाने वाली बात यह रही कि इन हमलों में तुर्की से मिले ड्रोन इस्तेमाल किए गए।
भारत ने इन सभी हमलों को अपने एयर डिफेंस सिस्टम से नाकाम कर दिया। लेकिन अब मामला सिर्फ पाकिस्तान तक सीमित नहीं रहा — तुर्की भी सवालों के घेरे में आ गया है।
तुर्की का पाकिस्तान समर्थन बना विवाद की जड़
तुर्की के इस कदम से भारत में गुस्सा फैल गया है। लोग सोशल मीडिया पर तुर्की के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। मांग की जा रही है कि तुर्की का पूरी तरह से बहिष्कार किया जाए — जैसे पहले मालदीव का किया गया था।
आपको याद होगा, जनवरी 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लक्षद्वीप यात्रा की तस्वीरें वायरल हुई थीं। इसके बाद कुछ मालदीव नेताओं ने भारत के खिलाफ आपत्तिजनक बातें कहीं थीं। इसके जवाब में भारतीयों ने मालदीव का बहिष्कार शुरू कर दिया। टूरिज्म से लेकर व्यापार तक उसका असर साफ दिखा — फ्लाइटें कैंसिल हुईं, होटलों की बुकिंग रुकी, और हजारों भारतीयों ने वहां जाना बंद कर दिया।
अब तुर्की के खिलाफ भी वैसा ही माहौल बनता दिख रहा है।
राजनीति से लेकर बाजार तक, हर जगह विरोध
तुर्की के खिलाफ सिर्फ आम लोग ही नहीं, राजनेता भी सख्त प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला ने कहा है कि अब तुर्की में डेस्टिनेशन वेडिंग बंद होनी चाहिए।
वहीं शिवसेना (उद्धव) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने तो साफ कहा कि “तुर्की में छुट्टियां बिताना मतलब रक्त धन (blood money) को बढ़ावा देना है।”
पर्यटन को सबसे बड़ा झटका
2023 में लगभग 2.75 लाख भारतीय पर्यटक तुर्की गए थे।
2024 में अनुमान था कि यह संख्या 3.25 लाख तक पहुंच सकती है।
लेकिन अब हालात बदल गए हैं।
ट्रैवल इंडस्ट्री के मुताबिक तुर्की के टूर पैकेज की बुकिंग में 20-25% तक गिरावट आ चुकी है।
कई टूर ऑपरेटरों ने तुर्की के लिए नई बुकिंग लेना बंद कर दिया है।
सरकार की ओर से भले कोई औपचारिक आदेश न आया हो, लेकिन ट्रैवल कंपनियां खुद ही सतर्क हो गई हैं।
अब असर बाजार पर भी: तुर्की के सेब से दूरी
गुस्सा सिर्फ ट्रैवल तक ही सीमित नहीं है। अब भारतीय बाजारों में तुर्की से आयातित सेब की बिक्री भी घट गई है।
2024-25 में भारत ने तुर्की से 1.6 लाख टन सेब आयात किए थे, जो कुल विदेशी सेब बाजार का 6-8% हिस्सा था।
लेकिन अब कई थोक व्यापारियों का कहना है कि ग्राहक तुर्की के सेब खरीदने से साफ इनकार कर रहे हैं।
सेब उत्पादक संघ ने सरकार से मांग की है कि तुर्की से आयात पर पूरी तरह रोक लगाई जाए।
भारत-तुर्की व्यापार संबंध खतरे में
सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार अब तुर्की के साथ व्यापारिक रिश्तों को पुनः विचार में ले रही है।
भारत तुर्की से दाल, तिलहन और स्टील जैसी वस्तुएं खरीदता है।
दोनों देशों के बीच 20 अरब डॉलर तक व्यापार बढ़ाने की योजना थी,
लेकिन अब सरकार का मानना है कि जो देश आतंक का समर्थन करता है, उसके साथ व्यापार नहीं हो सकता।
क्या एर्दोगन की होगी मुइज्जू जैसी हालत?
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने भारत विरोधी नीति अपनाकर अपनी ही अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई थी।
अब तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैय्यप एर्दोगन भी उसी रास्ते पर चलते नजर आ रहे हैं।
भारत से दूरी बनाना तुर्की के लिए न सिर्फ कूटनीतिक भूल है,
बल्कि इससे उसका पर्यटन, व्यापार और बाजार — तीनों को भारी नुकसान हो सकता है।
भारत अब स्पष्ट संदेश दे रहा है —
जो देश आतंकवाद का साथ देगा, उसके साथ हमारा कोई रिश्ता नहीं रहेगा।
तुर्की का बहिष्कार अब सिर्फ एक जन भावना नहीं,
बल्कि वह एक राष्ट्रीय नीति की ओर बढ़ता कदम बन सकता है।
तुर्की को तय करना होगा कि वह शांति के साथ खड़ा रहेगा या आतंक के साथ।
क्योंकि भारत अब सिर्फ देखेगा नहीं — जवाब देगा।