One Nation One Election:-संसद में दो-तिहाई बहुमत जुटाना मोदी सरकार के लिए मुश्किल

One Nation One Election:-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने संसद में वन नेशन, वन इलेक्शन (एक देश-एक चुनाव) विधेयक पेश कर दिया है। लेकिन इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पारित कराना सरकार के लिए आसान नहीं है, जाने इसके बारे में ?  One Nation One Election

One Nation One Election:-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने संसद में वन नेशन, वन इलेक्शन (एक देश-एक चुनाव) विधेयक पेश किया है। इसका उद्देश्य देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना है। इससे चुनावी खर्च और प्रशासनिक जटिलताओं को कम करने की बात कही जा रही है। लेकिन इसे पास कराना सरकार के लिए आसान नहीं है। आइए, सरल भाषा में विस्तार से समझते हैं कि ऐसा क्यों है।

क्या है वन नेशन, वन इलेक्शन?

इस बिल के तहत पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने की योजना है। सरकार का मानना है कि इससे बार-बार होने वाले चुनावों के कारण रुकने वाले विकास कार्यों में तेजी आएगी और चुनावी खर्च भी कम होगा। हालांकि, विपक्षी दलों और क्षेत्रीय पार्टियों को यह विधेयक अपने लिए खतरा लगता है।

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क्यों आसान नहीं है बिल पास कराना?

1. दो-तिहाई बहुमत की चुनौती:
वन नेशन, वन इलेक्शन विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पारित कराने के लिए सरकार को दो-तिहाई बहुमत चाहिए। लेकिन फिलहाल एनडीए के पास इतना समर्थन नहीं है।

  • लोकसभा में स्थिति:
    लोकसभा में 543 सदस्य हैं। सरकार के पास 293 सांसद हैं, लेकिन विधेयक पास कराने के लिए 362 सांसदों का समर्थन चाहिए।
  • राज्यसभा में स्थिति:
    राज्यसभा में 245 सदस्य हैं। सरकार के पास 125 सांसद हैं, लेकिन 164 सांसदों का समर्थन जरूरी है।

2. विपक्ष का कड़ा विरोध:
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), डीएमके जैसे बड़े विपक्षी दल इस बिल का खुलकर विरोध कर रहे हैं।

  • विपक्ष का कहना है कि यह बिल देश की संघीय व्यवस्था के खिलाफ है।
  • क्षेत्रीय दलों को डर है कि बीजेपी के पास नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत राष्ट्रीय चेहरा है। अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, तो क्षेत्रीय पार्टियों के राज्यों में बीजेपी को फायदा हो सकता है।

3. क्षेत्रीय दलों की नाराजगी:
वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP), बीजू जनता दल (बीजेडी), भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस), और एआईएडीएमके (AIADMK) जैसे दल भी सरकार का समर्थन करने को लेकर अनिश्चित हैं।

  • पहले इन दलों ने इस बिल पर सहमति जताई थी, लेकिन अब ये दूरी बना रहे हैं।
  • आंध्र प्रदेश और ओडिशा में बीजेडी और वाईएसआरसीपी ने हाल ही में बीजेपी के खिलाफ रुख अपनाया है।

4. राष्ट्रवादी भावनाओं की कमी:
2019 में सरकार ने जब आर्टिकल 370 को हटाने वाला बिल पेश किया था, तब उसे विपक्षी दलों का भी समर्थन मिला था। उस समय राष्ट्रीय भावना से जुड़े मुद्दे ने सरकार के पक्ष में माहौल बनाया था। लेकिन वन नेशन, वन इलेक्शन बिल में वैसा भावनात्मक जुड़ाव नहीं है।

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क्या कर रही है सरकार?

गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि प्रधानमंत्री ने इस विधेयक को व्यापक विचार-विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजने का सुझाव दिया है।

  • सरकार का लक्ष्य है कि इस बिल के फायदे समझाकर राष्ट्रीय स्तर पर सहमति बनाई जाए।
  • सरकार ने संकेत दिया है कि अगर यह बिल पास हो भी जाता है, तो इसे 2034 से लागू किया जाएगा।

विपक्ष

  • क्षेत्रीय दलों को डर:
    क्षेत्रीय दलों का कहना है कि उनके पास संसाधन और कार्यकर्ताओं की सीमित क्षमता है। एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ना उनके लिए मुश्किल होगा।
  • संघीय ढांचे पर असर:
    विपक्षी दलों का कहना है कि यह बिल राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर कर सकता है।

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