waqf bill पर मोदी का साथ क्यों दिया? नीतीश-नायडू के फैसले के पीछे की सियासी गणित

वक्फ बोर्ड (संशोधन) बिल पर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का रुख विपक्ष के लिए चौंकाने वाला रहा। आम धारणा यही थी, जाने इस बिल के बारे में ? waqf bill

waqf bill:-वक्फ बोर्ड (संशोधन) बिल पर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के रुख ने सबको चौंका दिया। ये दोनों नेता लंबे समय से मुस्लिम वोटरों के बीच लोकप्रिय रहे हैं, इसलिए यह माना जा रहा था कि वे इस बिल का विरोध करेंगे। लेकिन जब संसद में यह बिल पेश हुआ, तो उन्होंने न सिर्फ इसका समर्थन किया, बल्कि इस पर ऐसे बयान भी दिए जो विपक्ष को चुभने वाले थे। इससे सवाल उठता है कि क्या अब मुस्लिम वोट उनके लिए मायने नहीं रखते? या फिर इस फैसले के पीछे कोई और रणनीति है?

वक्फ बोर्ड (संशोधन) बिल क्यों विवादित माना जा रहा है?

वक्फ बोर्ड के पास पूरे देश में लाखों एकड़ जमीन है, जिसका इस्तेमाल धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए किया जाता है। इस बिल को लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और कई मुस्लिम संगठनों ने दावा किया कि सरकार इस कानून के जरिए वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण बढ़ाना चाहती है। उनका कहना है कि इससे वक्फ बोर्ड की जमीनें छीन ली जाएंगी और सरकार मनमानी कर सकेगी। इसीलिए मुस्लिम समुदाय चाहता था कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू इस बिल का विरोध करें।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दोनों नेताओं ने न सिर्फ इस बिल का समर्थन किया, बल्कि इसे लेकर ऐसे बयान दिए जो मुस्लिम संगठनों को नाराज कर सकते थे।

फिर भी समर्थन क्यों दिया?

नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू ने इस बिल का समर्थन क्यों किया, इसके पीछे तीन बड़े कारण हो सकते हैं—

1. गठबंधन धर्म निभाना

नीतीश कुमार की जेडीयू (JDU) के 12 सांसद और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी (TDP) के 16 सांसद मिलकर एनडीए (NDA) सरकार का हिस्सा हैं। अगर ये दोनों दल बिल का विरोध करते, तो सरकार को बड़ा झटका लग सकता था। ऐसे में गठबंधन के तहत मोदी सरकार का साथ देना ही बेहतर विकल्प था।

अगर नीतीश और नायडू इस बिल का विरोध करते, तो बीजेपी को उन पर भरोसा कम हो जाता और उनकी सौदेबाजी की ताकत भी घट जाती। आने वाले चुनावों में उन्हें बीजेपी के समर्थन की जरूरत पड़ सकती है, इसलिए उन्होंने समर्थन देना ही सही समझा।

2. मुस्लिम वोटों का डर नहीं रहा?

बिहार में करीब 17% और आंध्र प्रदेश में 9% से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। जाहिर है, मुस्लिम वोट इन राज्यों में चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद दोनों नेताओं ने इस बिल का समर्थन किया। इसका मतलब क्या है?

शायद नीतीश और नायडू को भरोसा है कि मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण उनके खिलाफ नहीं होगा।

  • बिहार में तेजस्वी यादव की आरजेडी (RJD) मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण पर निर्भर है।

  • लेकिन नीतीश शायद मानते हैं कि विकास और बीजेपी के साथ गठबंधन उन्हें हिंदू वोटों का बड़ा हिस्सा दिला सकता है, जिससे मुस्लिम वोटों के नुकसान की भरपाई हो जाएगी।

  • आंध्र प्रदेश में नायडू का मुकाबला वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) और कांग्रेस से है। अगर बीजेपी का समर्थन उन्हें गैर-मुस्लिम वोट दिला सकता है, तो वे इस समर्थन को गंवाना नहीं चाहेंगे।

3. सरकार के साथ रहने से फायदे ज्यादा हैं

नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू दोनों ही विकास पर जोर देने वाले नेता माने जाते हैं।

  • नीतीश बिहार में केंद्र से अधिक आर्थिक मदद चाहते हैं।

  • नायडू आंध्र प्रदेश के विकास के लिए फंड और विशेष राज्य का दर्जा चाहते हैं।

अगर वे सरकार के खिलाफ जाते, तो इन मांगों पर असर पड़ सकता था। इसीलिए उन्होंने वक्फ बिल का समर्थन कर मोदी सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने को प्राथमिकता दी।

क्या मुस्लिम वोटों का असर पड़ेगा?

इस फैसले के बाद मुस्लिम संगठनों ने नीतीश और नायडू पर नाराजगी जताई है।

  • बिहार में नीतीश की इफ्तार पार्टियों का बहिष्कार किया गया।

  • AIMPLB और अन्य संगठनों ने उनसे बिल का विरोध करने की अपील की थी, लेकिन उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया।

हालांकि, नीतीश और नायडू को शायद लगता है कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लिए पहले ही काफी काम किया है, जिससे वोटों पर असर नहीं पड़ेगा।

  • नीतीश ने मदरसों के आधुनिकीकरण और अल्पसंख्यक कल्याण योजनाएं लागू की हैं।

  • नायडू ने मुस्लिम स्कॉलरशिप और अन्य योजनाओं पर काम किया है।

तो क्या ये रणनीति सही साबित होगी?

अभी यह साफ नहीं है कि इस फैसले का चुनावी असर क्या होगा।

  • अगर मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह उनसे छिटक गया, तो विपक्ष को फायदा हो सकता है।

  • लेकिन अगर उनके फैसले से गैर-मुस्लिम वोटर उनकी तरफ ज्यादा आकर्षित हुए, तो यह लाभदायक सौदा साबित हो सकता है।

नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का वक्फ बिल पर समर्थन पूरी तरह से एक राजनीतिक गणित पर आधारित फैसला था।

  • उन्होंने गठबंधन धर्म निभाया, ताकि केंद्र के साथ रिश्ते मजबूत बने रहें।

  • उन्हें भरोसा है कि मुस्लिम वोटों का नुकसान उतना बड़ा नहीं होगा जितना विपक्ष दावा कर रहा है।

  • बीजेपी के समर्थन से उन्हें गैर-मुस्लिम वोटों में फायदा मिल सकता है।

अब देखना यह होगा कि इस फैसले का चुनावों पर क्या असर पड़ता है। क्या मुस्लिम वोटर उनसे दूर चले जाएंगे? या फिर उनकी रणनीति कामयाब होगी? इसका जवाब चुनावी नतीजों से ही मिलेगा!

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