Waqf Council :-वक्फ बोर्ड द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के 156 ऐतिहासिक स्मारकों पर दावा करने की खबर हाल ही में चर्चा में है। इनमें हुमायूं का मकबरा और कुतुब मीनार जैसे प्रमुख स्मारक भी शामिल हैं। वक्फ बोर्ड का कहना है , जाने पूरी खबर ?

Waqf Council:-दिल्ली वक्फ बोर्ड ने हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के 156 ऐतिहासिक स्मारकों पर अपना दावा किया है, जिसमें विश्व धरोहर हुमायूं का मकबरा और कुतुब मीनार जैसे प्रमुख स्मारक भी शामिल हैं। इस विवाद ने भारतीय धरोहर और संपत्ति विवाद को एक बार फिर से चर्चा में ला दिया है। वक्फ बोर्ड के दस्तावेज़ों के अनुसार, ASI ने इन संपत्तियों पर गैरकानूनी कब्जा किया हुआ है, जिसे वक्फ बोर्ड अपनी संपत्ति बता रहा है।
वक्फ बोर्ड का दावा:
दिल्ली वक्फ बोर्ड ने दावा किया है कि ASI द्वारा संरक्षित 156 संपत्तियों में से कई वक्फ संपत्ति हैं, और ASI ने इन पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। इन संपत्तियों में न केवल हुमायूं का मकबरा शामिल है, बल्कि कुतुब मीनार परिसर, जिसमें कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद और लौह स्तंभ भी आते हैं, पर भी वक्फ बोर्ड ने अधिकार जताया है। वक्फ बोर्ड के अनुसार, कुतुब मीनार परिसर में मौजूद कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर किया गया था, और अब यह मस्जिद उनकी संपत्ति है। मस्जिद के पूरे परिसर को वक्फ बोर्ड अपनी संपत्ति मानता है, जिसमें चौथी शताब्दी का लौह स्तंभ भी आता है, जो इस्लाम के आगमन से पूर्व का है।
हुमायूं का मकबरा:
वक्फ बोर्ड ने हुमायूं के मकबरे पर भी दावा किया है, जो एक विश्व धरोहर स्थल है और वर्तमान में ASI के संरक्षण में है। हुमायूं का मकबरा न केवल ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है। इस मकबरे में मुगल बादशाह हुमायूं और उनके वंशजों जैसे दारा शिकोह की कब्रें हैं। वक्फ बोर्ड का कहना है कि यह मकबरा उनकी संपत्ति है, जबकि ASI इस स्थल की सुरक्षा और देखभाल कर रहा है।
कुतुब मीनार परिसर:
वक्फ बोर्ड ने कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद और लौह स्तंभ पर भी दावा किया है। वक्फ बोर्ड का कहना है कि मस्जिद का निर्माण इस्लामी शासक कुतुब-उद-दीन ऐबक ने किया था, और इसलिए यह वक्फ संपत्ति है। साथ ही, लौह स्तंभ, जो चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा निर्मित माना जाता है, इस दावे का हिस्सा बन गया है क्योंकि यह मस्जिद के परिसर के अंतर्गत आता है।
वक्फ बोर्ड के दावे के ऐतिहासिक संदर्भ:
दिल्ली वक्फ बोर्ड के अनुसार, इन संपत्तियों को इस्लामी शासकों द्वारा वक्फ किया गया था, जिसमें कुतुब-उद-दीन ऐबक और लोधी शामिल हैं। हालांकि, ASI और कई इतिहासकारों का कहना है कि भारत में संपत्ति वक्फ करने की परंपरा 14वीं शताब्दी में फिरोज शाह तुगलक के समय शुरू हुई थी, जबकि वक्फ बोर्ड उससे पहले के शासकों के समय का दावा कर रहा है। वक्फ बोर्ड ने आज तक ASI को इस दावे का कोई पुख्ता सबूत नहीं दिया है, जिससे उनके दावे पर संदेह बढ़ गया है।
वक्फ का कानूनी अधिकार:
वक्फ बोर्ड का यह भी दावा है कि “Once a Waqf, Always a Waqf” यानी एक बार वक्फ संपत्ति घोषित हो जाने के बाद वह हमेशा के लिए वक्फ संपत्ति बनी रहती है। इस दावे के आधार पर, वक्फ बोर्ड ने इन स्मारकों पर अपने अधिकार की पुष्टि की है। हालांकि, कानूनी और ऐतिहासिक तौर पर वक्फ के इन दावों की पुष्टि अब तक नहीं हो पाई है। ASI का कहना है कि वक्फ बोर्ड ने केवल दावे किए हैं, पर कभी कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया।
सरकार और ASI का रुख:
सरकारी स्तर पर इस विवाद को लेकर विचार-विमर्श चल रहा है। ASI ने वक्फ बोर्ड के इन दावों को खारिज कर दिया है और कहा है कि इन ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण उनके अधीन है। ASI का कहना है कि ये स्मारक भारतीय धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं और इन्हें कानूनी रूप से संरक्षित किया जा रहा है। वक्फ बोर्ड के इस दावे ने सरकार और सांस्कृतिक संगठनों के बीच भी मतभेद पैदा कर दिए हैं।
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सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभाव:
यह विवाद धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। कुछ लोग इसे धार्मिक राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं, जबकि अन्य इसे ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के मुद्दे के रूप में देख रहे हैं। यदि वक्फ बोर्ड का दावा कानूनी रूप से स्वीकार किया जाता है, तो इससे भारतीय धरोहर और सांस्कृतिक स्थलों के अधिकारों पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
वक्फ बोर्ड द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के 156 स्मारकों पर दावा एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है। यह न केवल ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण का प्रश्न है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक संतुलन का भी सवाल है। अब यह देखना बाकी है कि सरकार और न्यायपालिका इस दावे पर क्या कदम उठाती हैं और इन ऐतिहासिक स्थलों का भविष्य क्या होगा।